और्व और पितरों की बातचीत

महाभारत आदि पर्व के ‘चैत्ररथ पर्व’ के अंतर्गत अध्याय 179 के अनुसार और्व और पितरों की बातचीत का वर्णन इस प्रकार है[1]-

और्व ने कहा - पितरो मैंने क्रोधवश उस समय जो सम्‍पूर्ण लोकों के विनाश को प्रतिज्ञा कर ली थी, वह झूठी नहीं होनी चाहिये। जिसका क्रोध और प्रतिज्ञा निष्‍फल होते हो, ऐसा बनने की मेरी इच्‍छा नही है। यदि मेरा क्रोध सफल नहीं हुआ तो वह मुझको उसी प्रकार जला देगा, जैसे आग की अरणी काष्‍ठ को जला देती है। जो किसी कारण वश उत्‍पन्‍न हुए क्रोध को सह लेता है, वह मनुष्‍य धर्म, अर्थ और काम की रक्षा करने में समर्थ नहीं होता। सबको जीतने की इच्‍छा रखने वाले राजाओं द्वारा उचित अवसर पर प्रयोग में लाया हुआ रोष दुष्‍टों का दमन और शत्रु पुरुषों की रक्षा करने वाला हो। मैं जिन दिनों माता की एक जांघ में गर्भ-शय्‍या पर सोता था, उन दिनों क्षत्रियों द्वारा भार्गवों का वध होने पर माताओं का करुण क्रन्‍दन मुझे स्‍पष्‍ट सुनायी देता था। इन नीच क्षत्रियों ने जब गर्भ के बच्‍चों तक सिर काट काटकर संसार में भृगुवंशी ब्राह्मणों का संहार आरम्‍भ कर दिया, तब मुझमें क्रोध का आवेश हुआ। जिनकी कोख भरी हुई थी, वे मेरी माताएं और पितृगण भी भय के मारे समस्‍त लोकों में भाग से फिरे, किंतु उन्‍हें कहीं भी शरण नहीं मिले। जब भार्गवों की पत्नियों का कोई भी रक्षक नहीं मिला, तब मेरी इस कल्‍याणमयी माता ने मुझे अपनी एक जांघ में छिपा-कर रखा था। जब तक जगत में कोई भी पाप कर्म को रोकने वाला होता है, तब तक सम्‍पूर्ण लोकों में पापियों का होना असम्‍भव नहीं होता। जब पापी मनुष्‍य को कही कोई रोकने वाला नहीं मिलता, तब बहुतेरे मनुष्‍य पाप करने में लग जाते हैं। जो मनुष्‍य शक्तिमान एवं समर्थ होते हुए भी जान बूझ-कर पाप को नही रोकता, वह भी उसी पाप कर्म से लिप्‍त हो जाता है। इस लोक में अपना जीवन सबको प्रिय हैं, यह समझकर सबका शासन करने वाले राजा लोग सामर्थ्‍य होते हुए भी मेरे पिताओं को रक्षा न कर सके, इसीलिये मैं भी इन सब लोकों पर कुपित हुआ हैं। मुझमें इन्‍हें दण्‍ड की देने की शक्ति है। अत: (इस विषय में) में आप लोग का वचन मानने में असमर्थ हूँ। यदि मैं भी शक्ति रहते हुए लोगों के इस महान पापाचार को उदासीन भाव से चुपचाप देखता रहूं, तो मुझे भी उन लोगों के पाप से भय हो सकता है। मेरे क्रोध से उत्‍पन्‍न हुई जो यह आग (सम्‍पूर्ण) लोकों को अपनी लपटों से लपेट लेना चाहती हैं, य‍दि मैं इसे रोक दूं तो यह मुझे ही अपने तेज से जलाकर भस्‍म कर डालेगी। मैं यह भी जानता हूँ कि आप लोग समस्‍त जगत का हित चाहने वाले हैं। अत: शक्तिशाली पितरो आप लोग ऐसा करें, जिससे इन लोकों का और मेरा भी कल्‍याण हो।

पितर बोले - और्य तुम्‍हारे क्रोध से उत्‍पन्‍न हुई जो यह अग्नि सब लोको को अपना प्राप्‍त बनाना चाहता हैं, उसे तुम जल में छोड़ दो, तुम्‍हारा कल्‍याण हो; क्‍योंकि (सभी) लोक जल में प्रतिष्ठि‍त हैं। सभी रस जल के परिणाम हैं तथा सम्‍पूर्ण जगत (भी) जल का परिणाम माना गया है। अत: द्विजश्रेष्‍ठ तुम अपनी इस क्रोधाग्रि को जल में ही छोड़ दो। विप्रवर यदि तुम्‍हारी इच्‍छा हो तो वह क्रोधाग्रि जल को जलाती हुई समुद्र में स्थित रहें, क्‍योंकि सभी लोक जल के परिणाम माने गये हैं। अनव ऐसा करने में तुम्‍हारी प्रतीक्षा भी सच्ची हो जायगी और देवताओ सहित समस्‍त लोक भी नष्‍ट नहीं होगे। वसिष्‍ठ जी कहते हैं - पराशर तब और्व ने (अपनी) उस क्रोधाग्रि को समुन्‍द्र में डाल दिया। आज भी वह बहुत बड़ी घोड़ी के मुख की-सी आकृति धारण करके महासागर के जल का पान करती रहती है। वेदज्ञ पुरुष उससे (भलीभाँति) परिचित है। वह बड़वा अपने मुख से वहीं आग उगलती हुई महासागर का जल पीती रहती है। ज्ञानियों में श्रेष्‍ठ पराशर तुम्‍हारा कल्‍याण हो, तुम परलोक की भलीभाँति जानते हो, अत: तुम्‍हें भी समस्‍त लोंकों का विनाश नहीं करना चाहिये।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत आदि पर्व अध्याय 179 श्लोक 1-23

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सम्मान | द्रोण का शिष्यों द्वारा द्रुपद पर आक्रमण | अर्जुन का द्रुपद को बंदी बनाकर लाना | द्रोण द्वारा द्रुपद को आधा राज्य देकर मुक्त करना | युधिष्ठिर का युवराज पद पर अभिषेक | पाण्डवों के शौर्य, कीर्ति और बल के विस्तार से धृतराष्ट्र को चिन्ता | कणिक का धृतराष्ट्र को कूटनीति का उपदेश
जतुगृह पर्व
पाण्डवों के प्रति पुरवासियों का अनुराग देखकर दुर्योधन को चिन्ता | दुर्योधन का धृतराष्ट्र से पाण्डवों को वारणावत भेज देने का प्रस्ताव | धृतराष्ट्र के आदेश से पाण्डवों की वारणावत यात्रा | दुर्योधन के आदेश से पुरोचन का वारणावत नगर में लाक्षागृह बनाना | पाण्डवों की वारणावत यात्रा तथा उनको विदुर का गुप्त उपदेश | वारणावत में पाण्डवों का स्वागत | लाक्षागृह में निवास और युधिष्ठिर-भीम की बातचीत | विदुर के भेजे हुए खनक द्वारा लाक्षागृह में सुरंग का निर्माण | लाक्षागृह का दाह | विदुर के भेजे हुए नाविक का पाण्डवों को गंगा के पार उतरना | हस्तिनापुर में पाण्डवों के लिए शोक-प्रकाश | कुन्ती के लिए भीम का जल लाना | माता और भाइयों को भूमि पर सोये देखकर भीम को क्रोध आना
हिडिम्बवध पर्व
हिडिम्ब के भेजने पर हिडिम्बा का पाण्डवों के पास जाना | भीम और हिडिम्बासुर का युद्ध | हिडिम्बा का कुन्ती से अपना मनोभाव प्रकट करना | भीम द्वारा हिडिम्बासुर का वध | युधिष्ठिर का भीम को हिडिम्बा-वध से रोकना | हिडिम्बा का भीम के लिए प्रार्थना करना | भीमसेन और हिडिम्बा का मिलन | घटोत्कच की उत्पत्ति | पाण्डवों को व्यासजी के दर्शन
वकवध पर्व
ब्राह्मण परिवार का कष्ट दूर करने हेतु कुन्ती-भीम की बातचीत | ब्राह्मण के चिन्तापूर्ण उद्गार | ब्राह्मणी का पति से जीवित रहने के लिए अनुरोध करना | ब्राह्मण कन्या के त्याग और विवेकपूर्ण वचन | कुन्ती का ब्राह्मण कन्या के पास जाना | कुन्ती का ब्राह्मण का दुख सुनना | कुन्ती और ब्राह्मण की बातचीत | भीम को वकासुर के पास भेजने का प्रस्ताव | भीम का भोजन लेकर वकासुर के पास जाना | भीम और वकासुर का युद्ध | वकासुर वध से भयभीत राक्षसों का पलायन
चैत्ररथ पर्व
पाण्डवों का एक ब्राह्मण से विचित्र कथाएँ सुनना | द्रोण का द्रुपद द्वारा अपमानित होने का वृत्तांत | द्रुपद के यज्ञ से धृष्टद्युम्न और द्रौपदी का जन्म | कुन्ती का पांचाल देश में जाना | व्यासजी का पाण्डवों से द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तांत सुनाना | पाण्डवों की पांचाल यात्रा | अर्जुन द्वारा चित्ररथ गन्धर्व की पराजय एवं दोनों की मित्रता | राजा संवरण का सूर्य कन्या तपती पर मोहित होना | तपती और संवरण की बातचीत | वसिष्ठ की मदद से संवरण को तपती की प्राप्ति | गन्धर्व का ब्राह्मण को पुरोहित बनाने के लिए आग्रह करना | वसिष्ठ के अद्भुत क्षमा-बल के आगे विश्वामित्र का पराभव | शक्ति के शाप से कल्माषपाद का राक्षस होना | कल्माषपाद का शाप से उद्धार | वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद को अश्मक नामक पुत्र की प्राप्ति | शक्ति पुत्र पराशर का जन्म | पितरों द्वारा और्व के क्रोध का निवारण | और्व और पितरों की बातचीत | पुलत्स्य आदि महिर्षियों के पराशर द्वारा राक्षस सत्र की समाप्ति | कल्माषपाद को ब्राह्मणी आंगिरसी का शाप | पाण्डवों का धौम्य को पुरोहित बनाना
स्वयंवर पर्व
पाण्डवों की पांचाल-यात्रा में ब्राह्मणों से बातचीत | ब्राह्मणों का द्रुपद की राजधानी में कुम्हार के पास रहना | स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा | धृष्टद्युम्न का स्वयंवर में आये राजाओं का परिचय देना | राजाओं का लक्ष्यवेध के लिए उद्योग और असफल होना | अर्जुन का लक्ष्यवेध करके द्रौपदी को प्राप्त करना | भीम और अर्जुन द्वारा द्रुपद की रक्षा | कृष्ण-बलराम का वार्तालाप | अर्जुन और भीम द्वारा कर्ण एवं शल्य की पराजय | द्रौपदी सहित भीम-अर्जुन का अपने डेरे पर जाना | कुन्ती, अर्जुन और युधिष्ठिर की बातचीत | पाँचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ विवाह | श्रीकृष्ण की पाण्डवों से भेंट | धृष्टद्युम्न का द्रुपद के पास आना | द्रौपदी के विषय में द्रुपद के प्रश्न
वैवाहिक पर्व
धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुपद के पास पुरोहित भेजना | पाण्डवों और कुन्ती का द्रुपद द्वारा सम्मान | द्रुपद-युधिष्ठिर की बातचीत एवं व्यासजी का आगमन | द्रौपदी का पाण्डवों से विवाह के संबंध में अपने-अपने विचार | व्यासजी का द्रुपद को द्रौपदी-पाण्डवों के पूर्वजन्म की कथा सुनाना | द्रुपद का द्रौपदी-पाण्डवों के दिव्य रूपों की झाँकी करना | द्रौपदी का पाँचों पाण्डवों के साथ विवाह | कुन्ती का द्रौपदी को उपदेश एवं आशीर्वाद
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अर्जुन का सुभद्रा पर आसक्त होना | यादवों की अर्जुन के विरुद्ध युद्ध की तैयारी
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अर्जुन और सुभद्रा का विवाह | अर्जुन-सुभद्रा का श्रीकृष्ण के साथ इन्द्रप्रस्थ पहुंचना | द्रौपदी के पुत्र एवं अभिमन्यु के जन्म-संस्कार
खाण्डव दाह पर्व
युधिष्ठिर के राज्य की विशेषता | अग्निदेव का खाण्डववन को जलाना | राजा श्वेतकि की कथा | अर्जुन का अग्निदेव से दिव्य धनुष एवं रथ मांगना | अग्निदेव का अर्जुन और कृष्ण को दिव्य धनुष, चक्र आदि देना | खाण्डववन में जलते हुए प्राणियों की दुर्दशा | देवताओं के साथ श्रीकृष्ण और अर्जुन का युद्ध
मय दर्शन पर्व
खाण्डववन का विनाश और मयासुर की रक्षा | मन्दपाल मुनि द्वारा जरिता-शांर्गिका से पुत्रों की उत्पत्ति | जरिता का अपने बच्चों की रक्षा हेतु विलाप करना | जरिता एवं उसके बच्चों का संवाद | शार्ंगकों के स्तवन से प्रसन्न अग्निदेव का अभय देना | मन्दपाल का अपने बाल-बच्चों से मिलना | इंद्रदेव का श्रीकृष्ण और अर्जुन को वरदान

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