- महाभारत आदि पर्व के ‘विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व’ के अंतर्गत अध्याय 204 के अनुसार विदुर की सम्मति, द्रोण-भीष्म के वचनों का समर्थन का वर्णन इस प्रकार है[1]-
विषय सूची
विदुर का धृतराष्ट्र को पाण्डवों के हित में सलाह देना
विदुरजी बोले-राजन्! आपके (हितैषी) बान्धवों का यह कर्तव्य है कि वे आपको संदेह रहित हित की बात बतायें। परन्तु आप सुनना नहीं चाहते, इसलिये आपके भीतर उनकी कही हुई बात भी ठहर नहीं पा रही है। राजन्! कुरुश्रेष्ठ शंतनुनन्दन भीष्म ने आपसे प्रिय और हित की बात कही है; परंतु आप उसे ग्रहण नहीं कर रहे हैं। इसी प्रकार आचार्य द्रोण ने अनेक प्रकार से आपके लिये उत्तम हित की बात बतायी है; किन्तु राधानन्दन कर्ण उसे आपके लिये हितकर नहीं मानते। महाराज! मैं बहुत सोचने-विचारने पर भी आपके किसी ऐसे परमसुह्रद् व्यक्ति को नहीं देखता, जो इन दोनों वीर महापुरुषों से बुद्धि या विचार शक्ति में अधिक हो। राजेन्द्र! अवस्था, बुद्धि और शास्त्रज्ञान – सभी बातों में ये दोनों बढ़े-चढ़े हैं और आपमें तथा पाण्डवों में समान भाव रखते हैं। भरतवंशी नरेश! ये दोनों धर्म और सत्यवादिता में दशरथनन्दन श्रीराम तथा राजा गय से कम नहीं है। मेरा यह कथन सर्वथा संशयरहित है। उन्होंने आपके सामने भी (कभी) कोई ऐसी बात नहीं कही होगी, जो आपके लिये अनिष्टकारक सिद्ध हुई हो तथा इनके द्वारा आपका कुछ अपकार हुआ हो, ऐसा भी देखने में नहीं आता। महाराज! आपने भी इनका कोई अपराध नहीं किया है; फिर ये दोनों सत्यपराक्रमी पुरुष सिंह आपको हितकारक सलाह न दें, यह कैसे हो सकता है ? नरेश्वर! ये दोनों इस लोक में नरश्रेष्ठ और बुद्धिमान् हैं, अत: आपके लिये ये कोई कुटिलतापूर्ण बात नहीं कहेंगे।। कुरुनन्दन! इनके विषय में मेरा यह निश्चित विचार है कि ये दोनों धर्म के ज्ञाता महापुरुष हैं, अत: स्वार्थ के लिये किसी एक ही पक्ष को लाभ पहुँचानेवाली बात नहीं कहेंगे। भारत! इन्होंने जो सम्मति दी है, इसीको मैं आपके लिये परम कल्याणकारक मानता हूँ। महाराज! जैसे दुर्योधन आदि आपके पुत्र हैं, वैसे ही पाण्डव भी आपके पुत्र हैं-इसमें संशय नहीं है। इस बात को न जानने वाले कुछ मन्त्री यदि आपको पाण्डवों के अहित की सलाह दें तो यह कहना पड़ेगा कि वे मन्त्रीलोग, आपका कल्याण किस बात में है, यह विशेष रुप में नही देख पा रहे हैं। राजन्! यदि आपके हृदय में अपने पुत्रों पर विशेष पक्षपात है तो आपके भीतर के छिपे भाव को बाहर सबके सामने प्रकट करने वाले लोग निश्चय ही आपका भला नहीं कर सकते। महाराज! इसीलिये ये दोनों महातेजस्वी महात्मा आपके सामने कुछ खोलकर नहीं कह सके हैं। इन्होंने आपको ठीक ही सलाह दी है; परंतु आप उसे निश्चितरुप से स्वीकार नहीं करते हैं। इन पुरुषशिरोमणियों ने जो पाण्डवों के अजेय होने की बात बतायी है, वह बिल्कुल ठीक है। पुरुषसिंह! आपका कल्याण हो। राजन्! दायें-बायें दोनों हाथों से बाण चलानेवाले श्रीमान् पाण्डुकुमार धनंजय को साक्षात् इन्द्र भी युद्ध में कैसे जीत सकते हैं? दस हजार हाथियों के समान महान् बलवान् महाबाहु भीमसेन को युद्ध में देवता भी कैसे जीत सकते हैं? इसी प्रकार जो जीवित रहना चाहता है, उसके द्वारा युद्ध में निपुण तथा यमराज के पुत्रों की भाँति भयंकर दोनों भाई नकुल-सहदेव कैसे जीते जा सकते है ?[1]
जिन ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर में धैर्य, दया, क्षमा, सत्य और पराक्रम आदि गुण नित्य निवास करते हैं, उन्हें रण भूमि में कैसे हराया जा सकता है ? बलरामजी जिनके पक्षपाती हैं, भगवान् श्रीकृष्ण जिनके सलाहकार हैं तथा जिनके पक्ष में सात्यकि वीर है, वे पाण्डव युद्ध में किसे नहीं परास्त कर देंगे ? द्रुपद जिनके श्रशुर हैं और उनके पुत्र पृषतवंशी धृष्टद्युम्न आदि वीर भ्राता जिनके साले हैं, भारत! ऐसे पाण्डवों को रणभूमि में जीतना असम्भव है। इस बात को जानकर तथा पहले उनके पिता का राज्य होने के कारण वे ही धर्मपूर्वक इस राज्य के उत्तराधिकारी हैं, इस बात की ओर ध्यान देकर उनके साथ उत्तम बर्ताव कीजिये। राजन्! पुरोचन के हाथों जो कुछ कराया गया, उससे आपका बहुत बड़ा अपयश सब ओर फैल गया है। अपने उस कलंक को आज आप पाण्डवों पर अनुग्रह करके धो डालिये। पाण्डवों पर किया हुआ यह अनुग्रह हमारे कुल के सभी लोगों के जीवन का रक्षक, परम हितकारक और सम्पूर्ण क्षत्रिय जाति का अभ्युदय करने वाला होगा। राजन्! द्रुपद भी बहुत बड़े राजा हैं और पहले हमारे साथ उनका वैर भी हो चुका है। अत: मित्र के रुप में उनका संग्रह हमारे अपने पक्ष की वृद्धि का कारण होगा। पृथ्वीपते! यदुवंशियों की संख्या बहुत है और वे बलवान् भी हैं। जिस ओर श्रीकृष्ण रहेंगे, उधर ही वे सभी रहेंगे। इसलिये जिस पक्ष में श्रीकृष्ण होंगे, उस पक्ष की विजय अवश्य होगी। महाराज! जो कार्य शांतिपूर्वक समझाने-बुझाने से ही सिद्ध हो जा सकता है, उसी को कौन दैव का मारा हुआ मनुष्य युद्ध के द्वारा सिद्ध करेगा। कुन्ती के पुत्रों को जीवित सुनकर नगर और जनपद के सभी लोग उन्हें देखने के लिये अत्यन्त उत्सुक हो रहे हैं। राजन्! उन सबका प्रिय कीजिये। दुर्योधन, कर्ण और सुबलपुत्र शकुनि- ये अधर्मपरायण, खोटी बुद्धिवाले और मुर्ख हैं; अत: इनका कहना न मानिये। भूपाल! आप गुणवान् है। आपसे तो मैंने पहले ही यह कह दिया कि दुर्योधन के अपराध से निश्चय ही यह समस्त प्रजा नष्ट हो जायगी।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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| अर्जुन का द्रुपद को बंदी बनाकर लाना
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| युधिष्ठिर का युवराज पद पर अभिषेक
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| वारणावत में पाण्डवों का स्वागत
| लाक्षागृह में निवास और युधिष्ठिर-भीम की बातचीत
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| लाक्षागृह का दाह
| विदुर के भेजे हुए नाविक का पाण्डवों को गंगा के पार उतरना
| हस्तिनापुर में पाण्डवों के लिए शोक-प्रकाश
| कुन्ती के लिए भीम का जल लाना
| माता और भाइयों को भूमि पर सोये देखकर भीम को क्रोध आना
हिडिम्बवध पर्व
हिडिम्ब के भेजने पर हिडिम्बा का पाण्डवों के पास जाना
| भीम और हिडिम्बासुर का युद्ध
| हिडिम्बा का कुन्ती से अपना मनोभाव प्रकट करना
| भीम द्वारा हिडिम्बासुर का वध
| युधिष्ठिर का भीम को हिडिम्बा-वध से रोकना
| हिडिम्बा का भीम के लिए प्रार्थना करना
| भीमसेन और हिडिम्बा का मिलन
| घटोत्कच की उत्पत्ति
| पाण्डवों को व्यासजी के दर्शन
वकवध पर्व
ब्राह्मण परिवार का कष्ट दूर करने हेतु कुन्ती-भीम की बातचीत
| ब्राह्मण के चिन्तापूर्ण उद्गार
| ब्राह्मणी का पति से जीवित रहने के लिए अनुरोध करना
| ब्राह्मण कन्या के त्याग और विवेकपूर्ण वचन
| कुन्ती का ब्राह्मण कन्या के पास जाना
| कुन्ती का ब्राह्मण का दुख सुनना
| कुन्ती और ब्राह्मण की बातचीत
| भीम को वकासुर के पास भेजने का प्रस्ताव
| भीम का भोजन लेकर वकासुर के पास जाना
| भीम और वकासुर का युद्ध
| वकासुर वध से भयभीत राक्षसों का पलायन
चैत्ररथ पर्व
पाण्डवों का एक ब्राह्मण से विचित्र कथाएँ सुनना
| द्रोण का द्रुपद द्वारा अपमानित होने का वृत्तांत
| द्रुपद के यज्ञ से धृष्टद्युम्न और द्रौपदी का जन्म
| कुन्ती का पांचाल देश में जाना
| व्यासजी का पाण्डवों से द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तांत सुनाना
| पाण्डवों की पांचाल यात्रा
| अर्जुन द्वारा चित्ररथ गन्धर्व की पराजय एवं दोनों की मित्रता
| राजा संवरण का सूर्य कन्या तपती पर मोहित होना
| तपती और संवरण की बातचीत
| वसिष्ठ की मदद से संवरण को तपती की प्राप्ति
| गन्धर्व का ब्राह्मण को पुरोहित बनाने के लिए आग्रह करना
| वसिष्ठ के अद्भुत क्षमा-बल के आगे विश्वामित्र का पराभव
| शक्ति के शाप से कल्माषपाद का राक्षस होना
| कल्माषपाद का शाप से उद्धार
| वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद को अश्मक नामक पुत्र की प्राप्ति
| शक्ति पुत्र पराशर का जन्म
| पितरों द्वारा और्व के क्रोध का निवारण
| और्व और पितरों की बातचीत
| पुलत्स्य आदि महिर्षियों के पराशर द्वारा राक्षस सत्र की समाप्ति
| कल्माषपाद को ब्राह्मणी आंगिरसी का शाप
| पाण्डवों का धौम्य को पुरोहित बनाना
स्वयंवर पर्व
पाण्डवों की पांचाल-यात्रा में ब्राह्मणों से बातचीत
| ब्राह्मणों का द्रुपद की राजधानी में कुम्हार के पास रहना
| स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा
| धृष्टद्युम्न का स्वयंवर में आये राजाओं का परिचय देना
| राजाओं का लक्ष्यवेध के लिए उद्योग और असफल होना
| अर्जुन का लक्ष्यवेध करके द्रौपदी को प्राप्त करना
| भीम और अर्जुन द्वारा द्रुपद की रक्षा
| कृष्ण-बलराम का वार्तालाप
| अर्जुन और भीम द्वारा कर्ण एवं शल्य की पराजय
| द्रौपदी सहित भीम-अर्जुन का अपने डेरे पर जाना
| कुन्ती, अर्जुन और युधिष्ठिर की बातचीत
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| श्रीकृष्ण की पाण्डवों से भेंट
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वैवाहिक पर्व
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| सुन्द-उपसुन्द द्वारा त्रिलोक विजय
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हरणा हरण पर्व
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