- महाभारत आदि पर्व के ‘हिडिम्बवध पर्व’ के अंतर्गत अध्याय 151 के अनुसार हिडिम्ब के भेजने पर हिडिम्बा का पाण्डवों के पास जानें का वर्णन इस प्रकार है[1]-
वैशम्पायन जी कहते हैं - जनमेजय जहाँ पाण्डव कुन्ती सहित सो रहे थे, उस वन से थोड़ी दूर पर एक शाल-वृक्ष का आश्रय ले हिडिम्ब नामक राक्षस रहता था। वह बड़ा क्रुर और मनुष्य मांस खाने वाला था। उसका बल और पराक्रम महान था। वह वर्षाकाल के मेघ की भाँति काला था। उसकी आंखे भूरे रंग की थीं और आकृति से क्रूरता टपक रही थी। उसका मुख बड़ी-बड़ी दाढ़ों के कारण विकराल दिखायी देता था। वह भूख से पीड़ित था और मांस मिलने की आशा में बैठा था। उसके नितम्ब और पेट लम्बे थे। दाढ़ी, मूंछ और सिर के बाल लाल रंग के थे। उसका गला और कंधे महान वृक्ष के समान जान पड़ते थे। दोनों कान भाले के समान लम्बे और नुकीले थे। वह देखने में बड़ा भयानक था। दैवेच्छा से उसकी दृष्टि उन महारथी पाण्डवों पर पड़ी। बेडौल रुप तथा भुरी आंखो वाला वह विकराल राक्षस देखने में बड़ा डरावना था। भूख से व्याकुल होकर वह कच्चा मांस खाना चाहता था। उसने अकस्मात पाण्डवों को देख लिया। तब अगुलियों को ऊपर उठाकर सिर के रुप से बालों को खुजलाता और फटकारता हुआ वह विशाल मुख वाला राक्षस पाण्डवों की ओर बार-बार देखकर जंभाई लेने लगा। मनुष्य का मांस मिलने की सम्भावना से उसे बड़ा हर्ष हुआ। उस महाबली विशालकाय राक्षस ने मनुष्य की गन्ध पाकर अपनी बहिन से इस प्रकार कहा - ‘आज बहुत दिनों के बाद ऐसा भोजन मिला हैं, जो मुझे बहुत प्रिय है। इस समय मेरी जीभ लार ठपका रही है और बड़े सुख से लप-लप कर रही है। ‘आज मैं अपनी आठों दाढ़ो को, जिनके अग्रभाग बड़े तीखे हैं और जिनकी चोट प्रारम्भ से ही अत्यन्त दु:सह होती हैं, दीर्घकाल के पश्चात मनुष्यों के शरीरों और चिकने मांस में दुबाउंगा। ‘मैं मनुष्य की गर्दन पर चढ़कर उसकी नाड़ियों को काट दूंगा और उसका गरम-गरम, फेनयुक्त तथा ताजा खून-खून छककर पीउंगा। ‘बहिन जाओ, पता तो लगाओ, ये कौन इस वन में आकर सो रहे हैं? मनुष्य की तीव्र गन्ध आज मेरी नासिका को मानो तृप्त किये देती हैं। ‘तुम इन सब मनुष्यों को मारकर मेरे पास ले आओ। वे हमारी हद में सो रहे हैं, (इसीलिये) इनसे तुम्हें तनिक भी खटका नहीं है। ‘फिर हम दोनों एक साथ बैठकर इन मनुष्यों के मांस नोच-नोचकर जी-भर खायेंगे। तुम मेरी इस आज्ञा का तुरंत पालन करो। ‘इच्छानुसार मनुष्य मांस लाकर हम दोनों ताल देते हुए साथ-साथ अनेक प्रकार के नृत्य करें। भरतश्रेष्ठ उस समय वन में हिडिम्ब के यों कहने पर हिडिम्बा अपने भाई की बात मानकर मानो बड़ी उतावली के साथ उस स्थान पर गयी, जहाँ पाण्डव को सोते और किसी से परास्त न होने वाले भीमसेन को जागते देखा। धरती पर उगे हुए साखू के पौधे की भाँति मनोहर भीमसेन को देखते ही वह राक्षसी (मुग्ध हों)उन्हें चाहने लगी। इस पृथ्वी पर वे अनुपम रुपवान थे। (उसने मन-ही-मन सोचा-) ‘इन श्यामसुन्दर तरुण वीर की भुजाएं बड़ी-बड़ी हैं, कंधे सिंह-के-से हैं, ये महान तेजस्वी हैं, इनकी ग्रीवा शक्ख के समान सुन्दर और नेत्र कमल दल के सद्दश विशाल हैं। ये मेरे लिये उपयुक्त पति हो सकते हैं।[1] ‘मेरे भाई की बात क्रुरता से भरी हैं, अत: मै कदापि उसका पालन नहीं करुंगी। (नारी के हदय में) पतिप्रेम ही अत्यन्त प्रबल होता है। भाई का सौहार्द उसके समान नहीं होता। इन सबको मार देने पर इनके मांस से मुझे और मेरे भाई को केवल दो घड़ी के लिये तृप्ति मिल सकती हैं और यदि न मारुं तो बहुत वर्षो तक इनके साथ आनन्द भोगूंगी।’
विषय सूची
हिडिम्बा का भीमसेन से वार्तालाप
हिडिम्बा इच्छानुसार रुप धारण करने वाली थी। वह मानव जाति की स्त्री के समान सुन्दर रुप बनाकर लजीली ललना की भाँति धीरे-धीरे महाबाहु भीमसेन के पास गयी। दिव्य आभूषण उसकी शोभा बढ़ा रहे थे। तब उसने मुसकराकर भीमसेन से इस प्रकार पूछा- ‘पुरुषरत्न आप कौन हैं और कहाँ से आये हैं ? वे देवताओं के समान सुन्दर रुपवाले पुरुष कौन हैं, जो यहाँ सो रहे हैं? ‘और अनव ये सबसे बड़ी उग्रवाली श्यामा[2] सकुमारी देवी आपकी कौन लगती हैं, जो इस वन में आकर भी ऐसी नि:शक्ख सो रही हैं, मानो अपने घर में ही हों। ‘इन्हें यह पता नहीं है कि यह गहन वन राक्षसों का निवास स्थान हैं। यहाँ हिडिम्ब नामक पापात्मा राक्षस रहता हैं। ‘वह मेरा भाई है। उस राक्षस ने दुष्टभाव से मुझे यहाँ भेजा हैं। देवोपम वीर वह आप लोगों का मांस खाना चाहता हैं। ‘आपका तेज देवकुमारों का सा हैं, मैं आपको देखकर अब दूसरे को अपना पति बनाना नहीं चाहती। मैं यह सच्ची बात आपसे कह रही हूँ। ‘धर्मज्ञ इस बात को समझकर आप मेरे प्रति उचित बर्ताव कीजिये। मेरे तन-मन को कामदेव ने मथ डाला है। मैं आपकी सेविका हूं, आप मुझे स्वीकार कीजिये। ‘महाबाहो मैं इस नरभक्षी राक्षस से आपकी रक्षा करुंगी। हम दोनों पर्वतों की दुर्गम कन्दराओं में निवास करेंगे। अनघ आप मेरे पति हो जाइये। तपाये हुए सोने के समान वर्णवाली स्त्री को ‘श्यामा’ कहा जाता हैं, जैसे कि इस वचन से सिद्ध हुआ है- ‘तप्तकाञ्चनवर्णाभा सा स्त्री श्याभेति कव्यते। ‘वीर आपका भला चाहता हूँ। कही ऐसा न हो कि आपके ठुकराने से मेरे प्राण ही मुझे छोड़कर चले जायं। शत्रुदमन यदि आपने मुझे त्याग दिया तो मैं कदापि जीवित नहीं रह सकती। मैं आकाश में विरनचने वाली हूँ। जहाँ इच्छा हो, वहाँ विचरण कर सकती हूँ। आप मेरे साथ भिन्न-भिन्न लोकों और प्रदेशों में विहार करके अनुपम प्रसन्नता प्राप्त कीजिये।
भीमसेन बोले - राक्षसी ये मेरे ज्येष्ठ भ्राता हैं, जो मेरे लिये परम सम्मानीय गुरु हैं, इन्होंने अभी तक विवाह नहीं किया हैं, ऐसी दशा मे तुझसे विवाह करके किसी प्रकार परिवेत्ता[3] नहीं बनना चाहता। कौन ऐसा मनुष्य होगा, जो इस जगत में सामर्थ्यशाली होते हुए भी, सूखपूर्वक सोये हुए इन बन्धुओं को, माता को तथा बड़े भ्राता को भी किसी प्रकार अरक्षित छोड़कर जा सके? मुझ-जैसा कौन पुरुष काम पीड़ित की भाँति इन सोये हुए भाइयों और माता को राक्षस का भोजन बनाकर (अन्यत्र) जा सकताहै? राक्षसी ने कहा-आपको जो प्रिय लगे, मैं वही करुंगी। आप इन सब लोगों को जगा दिजिये। मैं इच्छानुसार उस मनुष्य भक्षी राक्षस से इन सबको छुडा लुंगी।
भीमसेन ने कहा - राक्षसी मेरे भाई और माता इस वन-में सुखपूर्वक सो रहे हैं, तुम्हारे दुरात्मा भाई के भय से मैं इन्हें जगाउंगा नहीं। भीरु सुलोचने मेरे पराक्रम को राक्षस, मनुष्य, गन्धर्व तथा यक्ष भी नही सह सकते हैं। अत:भद्रे तुम जाओ या रहो; अथवा तुम्हारी जैसी इच्छा हो, वही करो। तन्वगि अथवा यदि तुम चाहो तो अपने नरमांस भक्षी भाई को भेज दो।[4]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत आदि पर्व अध्याय 151 श्लोक 1-18
- ↑ तपाये हुए सोने के समान वर्णवाली स्त्री को 'श्यामा' कहा जाता है, जैसा कि इस वचन से सिद्ध है-
'तप्तकाञ्चनवर्णासा स्त्री श्यामेति कथ्यते।' - ↑ जो निर्दोष बड़े भाई के अविवाहित रहते हुए ही अपना विवाह कर लेता है, वह 'परिवेत्ता' कहलाता है। शास्त्रों में वह निंदनीय माना गया है।
- ↑ महाभारत आदि पर्व अध्याय 151 श्लोक 19-36
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| कुन्ती के लिए भीम का जल लाना
| माता और भाइयों को भूमि पर सोये देखकर भीम को क्रोध आना
हिडिम्बवध पर्व
हिडिम्ब के भेजने पर हिडिम्बा का पाण्डवों के पास जाना
| भीम और हिडिम्बासुर का युद्ध
| हिडिम्बा का कुन्ती से अपना मनोभाव प्रकट करना
| भीम द्वारा हिडिम्बासुर का वध
| युधिष्ठिर का भीम को हिडिम्बा-वध से रोकना
| हिडिम्बा का भीम के लिए प्रार्थना करना
| भीमसेन और हिडिम्बा का मिलन
| घटोत्कच की उत्पत्ति
| पाण्डवों को व्यासजी के दर्शन
वकवध पर्व
ब्राह्मण परिवार का कष्ट दूर करने हेतु कुन्ती-भीम की बातचीत
| ब्राह्मण के चिन्तापूर्ण उद्गार
| ब्राह्मणी का पति से जीवित रहने के लिए अनुरोध करना
| ब्राह्मण कन्या के त्याग और विवेकपूर्ण वचन
| कुन्ती का ब्राह्मण कन्या के पास जाना
| कुन्ती का ब्राह्मण का दुख सुनना
| कुन्ती और ब्राह्मण की बातचीत
| भीम को वकासुर के पास भेजने का प्रस्ताव
| भीम का भोजन लेकर वकासुर के पास जाना
| भीम और वकासुर का युद्ध
| वकासुर वध से भयभीत राक्षसों का पलायन
चैत्ररथ पर्व
पाण्डवों का एक ब्राह्मण से विचित्र कथाएँ सुनना
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| द्रुपद के यज्ञ से धृष्टद्युम्न और द्रौपदी का जन्म
| कुन्ती का पांचाल देश में जाना
| व्यासजी का पाण्डवों से द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तांत सुनाना
| पाण्डवों की पांचाल यात्रा
| अर्जुन द्वारा चित्ररथ गन्धर्व की पराजय एवं दोनों की मित्रता
| राजा संवरण का सूर्य कन्या तपती पर मोहित होना
| तपती और संवरण की बातचीत
| वसिष्ठ की मदद से संवरण को तपती की प्राप्ति
| गन्धर्व का ब्राह्मण को पुरोहित बनाने के लिए आग्रह करना
| वसिष्ठ के अद्भुत क्षमा-बल के आगे विश्वामित्र का पराभव
| शक्ति के शाप से कल्माषपाद का राक्षस होना
| कल्माषपाद का शाप से उद्धार
| वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद को अश्मक नामक पुत्र की प्राप्ति
| शक्ति पुत्र पराशर का जन्म
| पितरों द्वारा और्व के क्रोध का निवारण
| और्व और पितरों की बातचीत
| पुलत्स्य आदि महिर्षियों के पराशर द्वारा राक्षस सत्र की समाप्ति
| कल्माषपाद को ब्राह्मणी आंगिरसी का शाप
| पाण्डवों का धौम्य को पुरोहित बनाना
स्वयंवर पर्व
पाण्डवों की पांचाल-यात्रा में ब्राह्मणों से बातचीत
| ब्राह्मणों का द्रुपद की राजधानी में कुम्हार के पास रहना
| स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा
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वैवाहिक पर्व
धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुपद के पास पुरोहित भेजना
| पाण्डवों और कुन्ती का द्रुपद द्वारा सम्मान
| द्रुपद-युधिष्ठिर की बातचीत एवं व्यासजी का आगमन
| द्रौपदी का पाण्डवों से विवाह के संबंध में अपने-अपने विचार
| व्यासजी का द्रुपद को द्रौपदी-पाण्डवों के पूर्वजन्म की कथा सुनाना
| द्रुपद का द्रौपदी-पाण्डवों के दिव्य रूपों की झाँकी करना
| द्रौपदी का पाँचों पाण्डवों के साथ विवाह
| कुन्ती का द्रौपदी को उपदेश एवं आशीर्वाद
विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व
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| पाण्डवों का हस्तिनापुर आना
| इन्द्रप्रस्थ नगर का निर्माण
| श्रीकृष्ण-बलरामजी का द्वारका प्रस्थान
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| तिलोत्तमा को ब्रह्माजी द्वारा वरदान
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अर्जुन वनवास पर्व
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| यादवों की अर्जुन के विरुद्ध युद्ध की तैयारी
हरणा हरण पर्व
अर्जुन और सुभद्रा का विवाह
| अर्जुन-सुभद्रा का श्रीकृष्ण के साथ इन्द्रप्रस्थ पहुंचना
| द्रौपदी के पुत्र एवं अभिमन्यु के जन्म-संस्कार
खाण्डव दाह पर्व
युधिष्ठिर के राज्य की विशेषता
| अग्निदेव का खाण्डववन को जलाना
| राजा श्वेतकि की कथा
| अर्जुन का अग्निदेव से दिव्य धनुष एवं रथ मांगना
| अग्निदेव का अर्जुन और कृष्ण को दिव्य धनुष, चक्र आदि देना
| खाण्डववन में जलते हुए प्राणियों की दुर्दशा
| देवताओं के साथ श्रीकृष्ण और अर्जुन का युद्ध
मय दर्शन पर्व
खाण्डववन का विनाश और मयासुर की रक्षा
| मन्दपाल मुनि द्वारा जरिता-शांर्गिका से पुत्रों की उत्पत्ति
| जरिता का अपने बच्चों की रक्षा हेतु विलाप करना
| जरिता एवं उसके बच्चों का संवाद
| शार्ंगकों के स्तवन से प्रसन्न अग्निदेव का अभय देना
| मन्दपाल का अपने बाल-बच्चों से मिलना
| इंद्रदेव का श्रीकृष्ण और अर्जुन को वरदान
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