महाभारत की महत्ता

महाभारत आदि पर्व के ‘अंशावतरण पर्व’ के अंतर्गत अध्याय 62 के अनुसार महाभारत की महत्ता का वर्णन इस प्रकार है[1]-

जनमेजय ने कहा - द्विजश्रेष्ठ आपने कुरुवंशियों के चरित्ररुप महान महाभारत-नामक सम्‍पूर्ण इतिहास का बहुत संक्षेप से वर्णन किया है। निष्‍पाप तपोधन अब उस विचित्र अर्थ वाली कथा को विस्‍तार के साथ कहिये; क्‍योंकि उसे बिस्‍तार पूर्वक सुनने के लिये मेरे मन में बड़ा कौतुहल हो रहा है विप्रवर आप पुन: पूरे विस्‍तार के साथ यह कथा सुनावें। मैं अपने पूर्वजों के इस महान चरित्र को सुनते-सुनते तृप्त नहीं हो रहा हूँ। सब मनुष्‍यों द्वारा जिनकी प्रशंसा की जाती है, उन धर्मज्ञ पाण्‍डवों ने जो युद्ध-भूमि में समस्‍त अवध्‍य सैनिकों का भी वध किया था, इसका कोई छोटा या साधारण कारण नहीं हो सकता नरश्रेष्ठ पाण्‍डव शक्तिशाली और निरपराध थे तो भी उन्‍होंने दुरात्‍मा कौरवों के लिये हुए महान क्‍लेशों को कैसे चुपचाप सहन कर लिया? द्विजोत्तम अपनी विशाल भुजाओं से सुशोभित होने वाले भीमसेन में तो दस हजार हाथियों का बल था। फि‍र उन्‍होंने क्‍लेश उठाते हुए भी क्रोध को किस लिये रोक राखा था?।

द्रुपद कुमारी कृष्‍णा भी सब कुछ करने में समर्थ, सतीसाध्‍वी देवी थीं। धृतराष्ट्र के दुरात्‍मा पुत्रों द्वारा सताये जाने पर भी उन्‍होंने अपनी क्रोधपूर्ण दृष्टि से उन सबको जलाकर भस्‍म क्‍यों नहीं कर दिया।? कुन्‍ती के दोनों पुत्र भीमसेन और अर्जुन तथा माद्रीनन्‍दन नकुल और सहदेव भी उस समय दुष्ट कौरवों द्वारा अकारण सताये गये थे। उन चारों भाइयों ने जुए के दुर्व्‍यसन में फंसे हुए राजा युधिष्ठिर का साथ क्‍यों दिया।? धर्मात्‍माओं में श्रेष्ठ धर्मपुत्र धर्म के ज्ञाता थे, महान क्‍लेश में पड़ने योग्‍य कदापि नहीं थे, तो भी उन्‍होंने वह सब कैसे सहन कर लिया? भगवान श्रीकृष्ण जिनके सारथि थे, पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन अकेले ही वाणों की बर्षा करके समस्‍त सेनाओं को, जिनकी संख्‍या बहुत बड़ी थी, किस प्रकार यमलोक पहुँचा दिया? तपोधन यह सब वृतान्‍त आप ठीक-ठीक मुझे बताइये। उन महारथी वीरों ने विभिन्न स्‍थानों और अवसरों में जो-जो कर्म किये थे, वह सब सुनाइये।

वैशम्‍पायनजी बोले- महाराज इसके लिये कुछ समय नीयत कीजिये; क्‍योंकि इस पवित्र आख्‍यान का श्रीव्‍यासजी के द्वारा जो क्रमानुसार वर्णन किया गया है, वह बहुत विस्‍तृत है और वह सब आपके समक्ष कहकर सुनाना है। सर्वलोक पूजित अमित तेजस्‍वी महामना महर्षि व्‍यासजी के सम्‍पूर्ण मत का यहाँ वर्णन करुंगा। असीम प्रभावशाली सत्‍यवती नन्‍दन व्‍यासजी ने पुण्‍यात्‍मा पाण्‍डवों की यह कथा एक लाख श्‍लोकों में कही है। जो विद्वान इस आख्‍यान को सुनाता है और जो मनुष्‍य सुनते हैं, वे ब्रह्मलोक में जाकर देवताओं के समान हो जाते हैं।

यह ऋषियों द्वारा प्रशंसित पुरातन इतिहास श्रवण करने योग्‍य सब ग्रन्‍थों में श्रेष्ठ है। यह वेदों के समान ही पवित्र तथा उत्तम है। इसमें अर्थ और धर्म का पूर्णरुप से उपदेश किया जाता है। इस परम पावन इतिहास से मोक्ष बुद्धि प्राप्त होती है। जिनका स्‍वभाव अथवा विचार खोटा नहीं है, जो दानशील, सत्‍यवादी और आस्तिक हैं, ऐसे लोगों को व्‍यास द्वारा बिचरित वेदस्‍वरुप इस महाभारत को जो श्रवण कराता है, वह विद्वान अभीष्ट अर्थ को प्राप्त कर लेता है। साथ ही वह भ्रूण हत्या जैसे पाप को भी नष्ट कर देता है, इसमें संशय नहीं है। इस इतिहास को श्रवण करके अत्‍यन्‍त क्रूर मनुष्‍य भी राहु से छूटे हुए चन्‍द्रमा की भाँति सब पापों से मुक्त हो जाता है। यह ‘जय’ नामक इतिहास विजय की इच्‍छा वाले पुरुष को अवश्‍य सुनना चाहिये। इसका श्रवण करने वाला राजा भूमि पर विजय पाता और सब शत्रुओं को परास्‍त कर देता है। यह पुत्र की प्राप्ति कराने वाला और महान मंगलकारी श्रेष्ठ साधन है।[1]

युवराज तथा रानी को बारम्‍बार इसका श्रवण करते रहना चाहिये, इससे वह वीर पुत्र अथवा राज्‍य सिंहासन पर बैठने वाली कन्‍या को जन्‍म देती है। अमित मेघावी व्‍यासजी ने इसे पुण्‍यमय धर्मशास्त्र, उत्तम अर्थशास्त्र तथा सर्वोत्‍म मोक्षशास्त्र भी कहा है। जो वर्तमान काल में इसका पाठ करते हैं तथा जो भविष्‍य में इसे सुनेंगे, उनके पुत्र सेवा परायण और सेवक स्‍वामी का प्रिय करने वाले होंगे। जो मानव इस महाभारत को सुनता है, वह शरीर, वाणी और मन के द्वारा किये हुए सम्‍पूर्ण पापों को त्‍याग देता है। जो दूसरों के दोष न देखने वाले भरतवंशियों के महान जन्‍म वृतान्‍तरुप महाभारत श्रवण करते हैं, उन्‍हें इस लोक में भी रोग-व्‍याधि का भय नहीं होता, फि‍र परलोक में तो हो ही कैसे सकता है?।

लोक में जिनके महान कर्म विख्‍यात हैं, जो सम्‍पूर्ण विद्याओं के ज्ञान द्वारा उद्भासित होते थे और जिनके धन एवं तेज महान थे, ऐसे महामना पाण्‍डवों तथा अन्‍य क्षत्रियों की उज्‍जवल कीर्ति को लोक में फैलाने वाले और पुण्‍य कर्म के इच्‍छुक श्रीकृष्‍णद्वैपायन वेदव्‍यास ने इस पुण्‍यमय महाभारत ग्रन्‍थ का निर्माण किया है। यह धन, यश, आयु, पुण्‍य तथा स्‍वर्ग की प्राप्ति कराने वाला है। जो मानव इस लोक में पुण्‍य के लिये पवित्र ब्राह्मणों को इस परम पुण्‍यमय ग्रन्‍थ का श्रवण कराता है, उसे शाश्वत धर्म की प्राप्ति होती है। जो सदा कौरवों के इस विख्‍यात वंश का कीर्तन करता है, वह पवित्र हो जाता है। इसके सिवा उसे विपुल वंश की प्राप्ति होती है और वह लोक में अत्‍यन्‍त पूजनीय होता है। जो ब्राह्मण नियम पूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वर्षा के चार महीने तक निरन्‍तर इस पुण्‍यप्रद महाभारत का पाठ करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। जो महाभारत का पाठ करता है, उसे सम्‍पूर्ण वेदों का पारंगत जानना चाहिये।

इसमें देवताओं, राजर्षियों तथा पुण्यात्‍मा ब्रह्मर्षियों के जिन्‍होंने अपने सब पाप धो दिये हैं, चरित्र का वर्णन किया गया है। इसके सिवा इस ग्रन्‍थ में भगवान श्रीकृष्‍ण की महिमा का कीर्तन किया जाता है। देवेश्वर भगवान शिव और देवी पार्वती का इसमें वर्णन है तथा अनेक माताओं से उत्‍पन्न होने वाले कार्तिकेय जी के जन्‍म का प्रसंग भी इसमें कहा गया है। ब्राह्मणों तथा गौओं के माहात्‍म्‍य का निरुपण भी इस ग्रन्‍थ में किया गया है। इस प्रकार यह महाभारत सम्‍पूर्ण श्रुतियों का समूह है। धर्मात्‍मा पुरुषों को सदा इसका श्रवण करना चाहिये। जो विद्वान पर्व के दिन ब्राह्मणों को इसका श्रवण कराता है, उसके सब पाप धुल जाते हैं और वह स्‍वर्गलोक को जीतकर सनातन ब्रह्म को प्राप्‍त कर लेता है। जो राजा इस महाभारत को सुनता है, वह सारी पृथ्‍वी के राज्‍य का उपभोग करता है। गर्भवती स्‍त्री का श्रवण करे तो वह पुत्र को जन्‍म देती है। कुमारी कन्‍या सुने तो उसका शीघ्र विवाह हो जाता है। व्‍यापारी वैश्‍य यदि महाभारत श्रवण करें तो उनकी व्‍यापार के लिये की हुई यात्रा सफल होती है। शूरवीर सैनिक इसे सुनने से युद्ध में विजय पाते हैं। जो आस्तिक और दोष दृष्टि से रहित हों, उन ब्राह्मणों को नित्‍य इसका श्रवण करना चाहिये। वेद-विद्या का अध्‍ययन एवं ब्रह्मचर्य व्रत पूर्ण करके जो स्‍नातक हो चुके हैं, उन विजयी क्षत्रियों को और क्षत्रियों के अधीन रहने वाले स्‍वधर्म पारायण वैश्‍यों को भी महाभारत श्रवण कराना चाहिये भारत! सब धर्मों में यह महाभारत श्रवणरुप श्रेष्ठ धर्म पूर्वकाल से ही देखा गया है।

राजन! विशेषत: ब्राह्मण के मुख से इसे सुनने का विधान है। जो बारम्‍बार अथवा प्रतिदिन इसका पाठ करता है, वह परम गति को प्राप्‍त होता है। प्रतिदिन चाहे एक श्लोक या आधे श्लोक अथवा श्लोक के एक चरण का ही पाठ कर ले, किंतु महाभारत के अध्‍ययन से शून्‍य कभी नहीं रहना चाहिये। इस महाभारत में महात्‍मा राजर्षियों के विभिन्‍न प्रकार के जन्‍म-वृत्तान्‍तों का वर्णन है। इसमें मन्‍त्र-पदों का प्रयोग है। अनेक दृष्टियों (मतों) के अनुसार धर्म के स्‍वरुप का विवेचन किया गया है। इस ग्रन्‍थ में विचित्र युद्वों का वर्णन तथा राजाओं के अभ्‍युदय की कथा है।[2]

तात! इस महाभारत में ऋषियों तथा गन्‍धर्वों एवं राक्षसों की कथाऐं हैं। इसमें विभिन्न प्रसंगों को लेकर विस्‍तारपूर्वक वाक्‍य रचना की गयी है। इसमें पुण्‍य तीर्थों, पवित्र देशों, वनों, पर्वतों, नदियों और समुद्र के भी माहात्‍म्‍य का प्रतिपादन किया गया है। पुण्‍य प्रदशों एवं नगरों का भी वर्णन किया गया है। श्रेष्ठ उपचार और अलौकिक पराक्रम का भी वर्णन है। इस महाभारत में महर्षि व्‍यास ने सत्‍कार-योग (स्‍वागत-सत्‍कार के विविध प्रकार) का निरुपण किया है तथा रथसेना, अश्व-सेना और गज सेना की व्‍यूह रचना तथा युद्ध कौशल का वर्णन किया है। इसमें अनेक शैली की वाक्‍य योजना-कथोप-कथन का समावेश हुआ है। सारांश यह है कि इस ग्रन्‍थ में सभी विषयों का वर्णन है।

जो श्राद्ध करते समय अन्‍त में ब्राह्मणों को महाभारत के श्लोक एक वतुर्थांश भी सुना देता है, उसका किया हुआ वह श्राद्ध अक्षय होकर पितरों को अवश्‍य प्राप्त हो जाता है। दिन में इन्द्रियों अथवा मन के द्वारा जो पाप बन जाता है अथवा मनुष्‍य जानकर या अनजान में जो पाप कर बैठता है वह सब महाभारत की कथा सुनते ही नष्ट हो जाता है। इसमें भरतवंशियों के महान जन्‍म-वृत्तान्‍त का वर्णन है, इसलिये इसको ‘महाभारत’ कहते हैं। जो महाभारत नाम का यह निरुक्त (व्‍युत्‍पत्तियुक्त अर्थ) जानता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। वह भरतवंशी क्षत्रियों का महान और अद्भुत इतिहास है। अत: निरन्‍तर पाठ करने पर मनुष्‍यों को बड़े-बड़े पाप से छुड़ा देता है। शक्तिशाली आप्तकाम मुनिवर श्रीकृष्‍णद्वैपायन व्‍यासजी प्रति-दिन प्रात:काल उठकर स्‍नान-संध्‍या आदि से शुद्ध हो आदि से ही महाभारत की रचना करते थे। महर्षि तपस्‍या और नियम का आश्रय लेकर तीन वर्षों में इस ग्रन्‍थ को पूरा किया है।

इसलिये ब्राह्मणों को भी नियम में स्थिर होकर ही इस कथा का श्रवण करना चाहिये। जो ब्राह्मण श्रीव्‍यासजी की कही हुई इस पुण्‍यदायिनी उत्तम भारती कथा का श्रवण करायेंगे और जो मनुष्‍य इसे सुनेंगे, वे सब प्रकार की चेष्टा करते हुए भी इस बात के लिये शोक करने योग्‍न नहीं हैं कि उन्‍होंने अमुक कर्म क्‍यों किया और अमुक कर्म क्‍यों नहीं किया। धर्म की इच्‍छा रखने वाले मनुष्‍य के द्वारा यह‍ सारा महाभारत इतिहास पूर्णरुप से श्रवण करने योग्‍य है। ऐसा करने से मनुष्‍य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है। इस महान पुण्‍यदायक इतिहास को सुनने मात्र से ही मनुष्‍य को जो संतोष प्राप्त होता है, वह स्‍वर्गलोक प्राप्त कर लेने से भी नहीं मिलता। जो पुण्‍यात्‍मा मनुष्‍य श्रद्धापूर्वक इस अद्भुत इतिहास को सुनता और सुनाता है, वह राजसूय तथा अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है। जैसे ऐश्वर्यपूर्ण समुद्र और महान पर्वत मेरु दोनों रत्नों की खान कहे गये हैं, वैसे ही महाभारत रत्नस्‍वरुप कथाओं और उपदेशों का भण्‍डार कहा जाता है। यह महाभारत वेदों के समान पवित्र और उत्तम है। यह सुनने योग्‍य तो है ही, सुनते समय कानों को सुख देने वाला भी है। इसके श्रवण से अन्‍त:करण पवित्र होता और उत्तम शील-स्‍वाभाव की वृद्धि होती है। राजन जो वाचक को यह महाभारत दान करता है, उसके द्वारा समुद्र से घिरी हुई सम्‍पूर्ण पृथ्‍वी का दान सम्‍पन्न हो जाता है। जनमेजय मेरे द्वारा कही हुई इस आनन्‍द दायिनी दिव्‍य कथा को तुम पुण्‍य और विजय की प्राप्ति के लिये पूर्णरुप से सुनो। प्रतिदिन प्रात:काल उठकर इस ग्रन्‍थ का निर्माण करने वाले महामुनि श्रीकृष्‍णद्वैपायन ने महाभारत नामक इस अद्भुत इतिहास को तीन वर्षों में पूर्ण किया है। भरतश्रेष्ठ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के सम्‍बन्‍ध में जो बात इस ग्रन्‍थ में है, वही अन्‍यत्र भी है। जो इसमें नहीं है, वह कहीं भी नहीं है।[3]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत आदि पर्व अध्याय 62 श्लोक 1-21
  2. महाभारत आदि पर्व अध्याय 62 श्लोक 22-37
  3. महाभारत आदि पर्व अध्याय 62 श्लोक 38-53

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पुरुवंश का वर्णन | पुरुवंश, भरतवंश एवं पाण्डुवंश की परम्परा का वर्णन | महाभिष को ब्रह्माजी का शाप | शापग्रस्त वसुओं के साथ गंगा की बातचीत | प्रतीक का गंगा को पुत्र वधू के रूप में स्वीकार करना | शान्तनु का जन्म एवं राज्याभिषेक | शान्तनु और गंगा का शर्तों के साथ विवाह | वसुओं का जन्म एवं शाप से उद्धार | भीष्म का जन्म | वसिष्ठ द्वारा वसुओं को शाप प्राप्त होने की कथा | शान्तनु के रूप, गुण और सदाचार की प्रशंसा | गंगाजी को सुशिक्षित पुत्र की प्राप्ति | देवव्रत की भीष्म प्रतिज्ञा | सत्यवती के गर्भ से चित्रांगद, विचित्रवीर्य की उत्पत्ति | शान्तनु और चित्रांगद का निधन | विचित्रवीर्य का राज्याभिषेक | भीष्म द्वारा काशीराज की कन्याओं का हरण | भीष्म द्वारा सब राजाओं एवं शाल्व की पराजय | अम्बिका, अम्बालिका के साथ विचित्रवीर्य का विवाह | विचित्रवीर्य का निधन | सत्यवती का भीष्म से राज्य-ग्रहण का आग्रह | भीष्म की सम्मति से सत्यवती द्वारा व्यास का आवाहन | सत्यवती की आज्ञा से व्यास को अम्बिका, अम्बालिका के गर्भ में संतानोत्पादन की स्वीकृति | व्यास द्वारा विचित्रवीर्य के क्षेत्र से धृतराष्ट्र, पाण्डु, 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सम्मान | द्रोण का शिष्यों द्वारा द्रुपद पर आक्रमण | अर्जुन का द्रुपद को बंदी बनाकर लाना | द्रोण द्वारा द्रुपद को आधा राज्य देकर मुक्त करना | युधिष्ठिर का युवराज पद पर अभिषेक | पाण्डवों के शौर्य, कीर्ति और बल के विस्तार से धृतराष्ट्र को चिन्ता | कणिक का धृतराष्ट्र को कूटनीति का उपदेश
जतुगृह पर्व
पाण्डवों के प्रति पुरवासियों का अनुराग देखकर दुर्योधन को चिन्ता | दुर्योधन का धृतराष्ट्र से पाण्डवों को वारणावत भेज देने का प्रस्ताव | धृतराष्ट्र के आदेश से पाण्डवों की वारणावत यात्रा | दुर्योधन के आदेश से पुरोचन का वारणावत नगर में लाक्षागृह बनाना | पाण्डवों की वारणावत यात्रा तथा उनको विदुर का गुप्त उपदेश | वारणावत में पाण्डवों का स्वागत | लाक्षागृह में निवास और युधिष्ठिर-भीम की बातचीत | विदुर के भेजे हुए खनक द्वारा लाक्षागृह में सुरंग का निर्माण | लाक्षागृह का दाह | विदुर के भेजे हुए नाविक का पाण्डवों को गंगा के पार उतरना | हस्तिनापुर में पाण्डवों के लिए शोक-प्रकाश | कुन्ती के लिए भीम का जल लाना | माता और भाइयों को भूमि पर सोये देखकर भीम को क्रोध आना
हिडिम्बवध पर्व
हिडिम्ब के भेजने पर हिडिम्बा का पाण्डवों के पास जाना | भीम और हिडिम्बासुर का युद्ध | हिडिम्बा का कुन्ती से अपना मनोभाव प्रकट करना | भीम द्वारा हिडिम्बासुर का वध | युधिष्ठिर का भीम को हिडिम्बा-वध से रोकना | हिडिम्बा का भीम के लिए प्रार्थना करना | भीमसेन और हिडिम्बा का मिलन | घटोत्कच की उत्पत्ति | पाण्डवों को व्यासजी के दर्शन
वकवध पर्व
ब्राह्मण परिवार का कष्ट दूर करने हेतु कुन्ती-भीम की बातचीत | ब्राह्मण के चिन्तापूर्ण उद्गार | ब्राह्मणी का पति से जीवित रहने के लिए अनुरोध करना | ब्राह्मण कन्या के त्याग और विवेकपूर्ण वचन | कुन्ती का ब्राह्मण कन्या के पास जाना | कुन्ती का ब्राह्मण का दुख सुनना | कुन्ती और ब्राह्मण की बातचीत | भीम को वकासुर के पास भेजने का प्रस्ताव | भीम का भोजन लेकर वकासुर के पास जाना | भीम और वकासुर का युद्ध | वकासुर वध से भयभीत राक्षसों का पलायन
चैत्ररथ पर्व
पाण्डवों का एक ब्राह्मण से विचित्र कथाएँ सुनना | द्रोण का द्रुपद द्वारा अपमानित होने का वृत्तांत | द्रुपद के यज्ञ से धृष्टद्युम्न और द्रौपदी का जन्म | कुन्ती का पांचाल देश में जाना | व्यासजी का पाण्डवों से द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तांत सुनाना | पाण्डवों की पांचाल यात्रा | अर्जुन द्वारा चित्ररथ गन्धर्व की पराजय एवं दोनों की मित्रता | राजा संवरण का सूर्य कन्या तपती पर मोहित होना | तपती और संवरण की बातचीत | वसिष्ठ की मदद से संवरण को तपती की प्राप्ति | गन्धर्व का ब्राह्मण को पुरोहित बनाने के लिए आग्रह करना | वसिष्ठ के अद्भुत क्षमा-बल के आगे विश्वामित्र का पराभव | शक्ति के शाप से कल्माषपाद का राक्षस होना | कल्माषपाद का शाप से उद्धार | वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद को अश्मक नामक पुत्र की प्राप्ति | शक्ति पुत्र पराशर का जन्म | पितरों द्वारा और्व के क्रोध का निवारण | और्व और पितरों की बातचीत | पुलत्स्य आदि महिर्षियों के पराशर द्वारा राक्षस सत्र की समाप्ति | कल्माषपाद को ब्राह्मणी आंगिरसी का शाप | पाण्डवों का धौम्य को पुरोहित बनाना
स्वयंवर पर्व
पाण्डवों की पांचाल-यात्रा में ब्राह्मणों से बातचीत | ब्राह्मणों का द्रुपद की राजधानी में कुम्हार के पास रहना | स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा | धृष्टद्युम्न का स्वयंवर में आये राजाओं का परिचय देना | राजाओं का लक्ष्यवेध के लिए उद्योग और असफल होना | अर्जुन का लक्ष्यवेध करके द्रौपदी को प्राप्त करना | भीम और अर्जुन द्वारा द्रुपद की रक्षा | कृष्ण-बलराम का वार्तालाप | अर्जुन और भीम द्वारा कर्ण एवं शल्य की पराजय | द्रौपदी सहित भीम-अर्जुन का अपने डेरे पर जाना | कुन्ती, अर्जुन और युधिष्ठिर की बातचीत | पाँचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ विवाह | श्रीकृष्ण की पाण्डवों से भेंट | धृष्टद्युम्न का द्रुपद के पास आना | द्रौपदी के विषय में द्रुपद के प्रश्न
वैवाहिक पर्व
धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुपद के पास पुरोहित भेजना | पाण्डवों और कुन्ती का द्रुपद द्वारा सम्मान | द्रुपद-युधिष्ठिर की बातचीत एवं व्यासजी का आगमन | द्रौपदी का पाण्डवों से विवाह के संबंध में अपने-अपने विचार | व्यासजी का द्रुपद को द्रौपदी-पाण्डवों के पूर्वजन्म की कथा सुनाना | द्रुपद का द्रौपदी-पाण्डवों के दिव्य रूपों की झाँकी करना | द्रौपदी का पाँचों पाण्डवों के साथ विवाह | कुन्ती का द्रौपदी को उपदेश एवं आशीर्वाद
विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व
पाण्डवों के विवाह से दुर्योधन को चिन्ता | धृतराष्ट्र का पाण्डवों के प्रति प्रेम का दिखावा | धृतराष्ट्र-दुर्योधन की बातचीत, शत्रुओं को वश में करने के उपाय | पाण्डवों को पराक्रम से दबाने के लिए कर्ण की सम्मति | भीष्म की दुर्योधन से पाण्डवों को आधा राज्य देने की सलाह | द्रोणाचार्य की पाण्डवों को उपहार भेजने की सम्मति | विदुर की सम्मति, द्रोण-भीष्म के वचनों का समर्थन | धृतराष्ट्र की आज्ञा से विदुर का द्रुपद के पास जाना | पाण्डवों का हस्तिनापुर आना | इन्द्रप्रस्थ नगर का निर्माण | श्रीकृष्ण-बलरामजी का द्वारका प्रस्थान | पाण्डवों के यहाँ नारदजी का आगमन | नारद द्वारा सुन्द-उपसुन्द कथा का प्रस्ताव | सुन्द-उपसुन्द की तपस्या | सुन्द-उपसुन्द द्वारा त्रिलोक विजय | तिलोत्तमा की उत्पत्ति एवं सुन्दोपसुन्द को मोहित करने हेतु प्रस्थान | तिलोत्तमा की वजह से सुन्द-उपसुन्द में लड़ाई | तिलोत्तमा को ब्रह्माजी द्वारा वरदान | पाण्डवों का द्रौपदी के विषय में नियम-निर्धारण
अर्जुन वनवास पर्व
अर्जुन द्वारा गोधन की रक्षा के लिए नियम-भंग | अर्जुन का गंगाद्वार में रुकना एवं उलूपी से मिलन | अर्जुन का मणिपूर में चित्रांगदा से पाणिग्रहण | अर्जुन द्वारा वर्गा अप्सरा का उद्धार | वर्गा की आत्मकथा | अर्जुन का प्रभास तीर्थ में श्रीकृष्ण से मिलना
सुभद्रा हरण पर्व
अर्जुन का सुभद्रा पर आसक्त होना | यादवों की अर्जुन के विरुद्ध युद्ध की तैयारी
हरणा हरण पर्व
अर्जुन और सुभद्रा का विवाह | अर्जुन-सुभद्रा का श्रीकृष्ण के साथ इन्द्रप्रस्थ पहुंचना | द्रौपदी के पुत्र एवं अभिमन्यु के जन्म-संस्कार
खाण्डव दाह पर्व
युधिष्ठिर के राज्य की विशेषता | अग्निदेव का खाण्डववन को जलाना | राजा श्वेतकि की कथा | अर्जुन का अग्निदेव से दिव्य धनुष एवं रथ मांगना | अग्निदेव का अर्जुन और कृष्ण को दिव्य धनुष, चक्र आदि देना | खाण्डववन में जलते हुए प्राणियों की दुर्दशा | देवताओं के साथ श्रीकृष्ण और अर्जुन का युद्ध
मय दर्शन पर्व
खाण्डववन का विनाश और मयासुर की रक्षा | मन्दपाल मुनि द्वारा जरिता-शांर्गिका से पुत्रों की उत्पत्ति | जरिता का अपने बच्चों की रक्षा हेतु विलाप करना | जरिता एवं उसके बच्चों का संवाद | शार्ंगकों के स्तवन से प्रसन्न अग्निदेव का अभय देना | मन्दपाल का अपने बाल-बच्चों से मिलना | इंद्रदेव का श्रीकृष्ण और अर्जुन को वरदान

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