पाण्डु की आज्ञा से कुन्ती का पुत्रोत्पत्ति के लिए धर्मदेवता का आवाहन

महाभारत आदि पर्व के ‘सम्भव पर्व’ के अंतर्गत अध्याय 121 के अनुसार पाण्डु की आज्ञा से कुन्ती का संतानोत्पत्ति के लिये धर्मदेवता का आवाहन की कथा का वर्णन इस प्रकार है।[1]-

पाण्डु का कुन्ती को समझाना

वैशम्‍पायनजी कहते है- जनमेजय! कुन्‍ती के यों कहने पर धर्मज्ञ राजा पाण्‍डु ने देवी कुन्‍ती से पुन: यह धर्मयुक्त बात कही। पाण्‍डु बोले- कुन्‍ती! तुम्‍हारा कहना ठीक है। पूर्वकाल में राजा व्युषिताश्व ने जैसा तुमने कहा है, वैसा ही किया था। कल्‍याणी! वे देवताओं के समान तेजस्‍वी थे। अब मैं तुम्‍हें धर्म का तत्‍व बतलाता हूं, सुनो यह पुरातन धर्म तत्‍व धर्मज्ञ महात्‍मा ऋषियों ने प्रत्‍यक्ष किया है। साधु पुरुष इसी को प्राचीन धर्म कहते हैं। राजकन्‍ये! पति अपनी पत्नी से जो बात कहे, वह धर्म के अनुकूल हो या प्रतिकूल, उसे अवश्‍य पूर्ण करना चाहिये- ऐसा वेदज्ञ पुरुषों का कथन है। विशेषत: ऐसा पति, जो पुत्र की अभिलाषा रखता हो और स्‍वयं संतानोत्‍पादन की शक्ति से रहित हो, जो बात कहे, वह अवश्‍य माननी चाहिये। निर्दोष अंगों वाली शुभलक्षणे! मैं चूंकि पुत्र का मुंह देखने के लिये लालायित हूं, अतएव तुम्‍हारी प्रसन्नता के लिये मस्‍तक के समीप यह अञ्जलि धारण करता हूं, जो लाल-लाल अंगुलियों के युक्त तथा कमलदल के समान सुशोभित है। सुन्‍दर केशों वाली प्रिये! तुम मेरे आदेश से तपस्‍या में बढ़े-चढ़े हएु किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण के साथ समागम करके गुणवान् पुत्र उत्‍पन्न करो। सुश्रोणि! तुम्‍हारे प्रयत्‍न से मैं पुत्रवानों की गति प्राप्त करूं, ऐसी मेरी अभिलाषा है।

कुन्ती का पाण्डु को दुर्वासा ऋषि द्वारा दिये वर के विषय में बताना

वैशम्‍पायनजी कहते है- जनमेजय! इस प्रकार कही जाने पर पति के प्रिय और हित में लगी रहने वाली सुन्‍दरांगी कुन्‍ती शत्रुओं की राजधानी पर विजय पाने वाले महाराज पाण्‍डु से इस प्रकार बोली- ‘भरतश्रेष्ठ! क्षत्रियशिरोमणे! स्त्रियों के लिये यह बड़े अधर्म की बात है कि पति ही उनसे प्रसन्न होने के लिये बार-बार अनुरोध करे; क्‍योंकि नारी का यह कर्तव्‍य है कि वह पति को प्रसन्न रखे। महाबाहो! आप मेरी यह बात सुनिये।इससे आपको बड़ी प्रसन्नता होगी। ‘वाल्‍यावस्‍था में जब मैं पिता के घर थी, मुझे अतिथियों के सत्‍कार का काम सौंपा गया था। वहाँ कठोर व्रत का पालन करने वाले एक उग्रस्‍वभाव के ब्राह्मण की, जिनका धर्म के विषय में निश्‍चय दूसरों को अज्ञात है तथा जिन्‍हें लोग दुर्वासा कहते हैं, मैंने बड़ी सेवा-शुश्रूषा की। अपने मन को संयम में रखने वाले उन महात्‍मा को मैंने सब प्रकार के यत्नों द्वारा संतुष्ट किया। ‘तब भगवान् दुर्वासा ने वरदान के रुप में मुझे प्रयोग विधि सहित एक मन्‍त्र को उपदेश दिया और मुझसे इस प्रकार कहा-‘तुम इस मन्‍त्र से जिस-जिस देवता का आवाहन करोगी, वह निष्‍काम हो या सकाम, निश्‍चय ही तुम्‍हारे अधीन हो जायगा। ‘राजकुमारी! उस देवता के प्रसाद से तुम्‍हें पुत्र प्राप्त होगा’ भारत! इस प्रकार मेरे पिता के घर में उस ब्राह्मण ने उस समय मुझसे यह बात कही थी। ‘उस ब्राह्मण की बात सत्‍य ही होगी। उसके उपयोग का यह अवसर आ गया है। महाराज! आपकी आज्ञा होने पर मैं उस मन्‍त्र द्वारा किसी देवता का आवाहन कर सकती हूँ। जिससे राजर्षे! हम दोनों के लिये हितकर संतान प्राप्त हो।[1]

पाण्डु का कुन्ती को आज्ञा देना

महाराज! उन महायशस्वीत महर्षि ने जो विद्या मुझे दी थी, उसके द्वारा आवाहन करने पर कोई भी देवता आकर देवोपम पुत्र प्रदान करेगा, जो आपके संतानहीनता जनित शोक को दूर कर देगा; इस प्रकार मुझे संतान प्राप्त होगी और आपकी पुत्र कामना सफल हो जायगी। ‘सत्यनवानों में श्रेष्ठ नरेश! बताइये, मैं किस देवता का आवाहन करूं। आप समझ लें, मैं (आप के संतोषार्थ) इस कार्य के लिये तैयार हूँ। केवल आप से आज्ञा मिलने की प्रतीक्षा में हूँ। पाण्डु बोले- प्रिये! मैं धन्या हूं, तुमने मुझ पर महान् अनुग्रह किया। तुम्‍हीं मेरे कुल को धारण करने वाली हो। उन महर्षि को नमस्का।र है, जिन्होंने तुम्हें वैसा वर दिया। धर्म! अधर्म से प्रजा का पालन नहीं हो सकता। इसलिये वरारोहे! तुम आज ही विधिपूर्वक इसके लिये प्रयत्न करो। शुभे! सबसे पहले धर्म का आवाहन करो, क्योंकि वे ही सम्पूर्ण लोकों में धर्मात्माक हैं। (इस प्रकार करने पर) हमारा धर्म कभी किसी तरह अधर्म से संयुक्त नहीं हो सकता। बरारोहे! लोक भी उनको साक्षात् धर्म का स्व रुप मानता है। धर्म से उत्पकन्न होने वाला पुत्र कुरुवंशियों में सबसे अधिक धर्मात्मा होगा- इसमें संशय नहीं है। धर्म के द्वारा दिया हुआ जो पुत्र होगा, उसका मन अधर्म में नहीं लगेगा। अत: शुचिस्मिते तुम मन और इन्द्रियों को संयम में रखकर धर्म को भी सामने रखते हुए उपचार (पूजा) और अभिचार (प्रयोग विधि) के द्वारा धर्म देवता का आवाहन करो। वैशम्पानयनजी कहते हैं- राजन्! अपने पति पाण्डुऔ के यों कहने पर नारियों में श्रेष्ठ कुन्तीव ने ‘तथास्तु कहकर उन्हें प्रणाम किया और आज्ञा लेकर उनकी परिक्रमा की।[2]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत आदि पर्व अध्याय 121 श्लोक 1-15
  2. महाभारत आदि पर्व अध्याय 121 श्लोक 16-21

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जतुगृह पर्व
पाण्डवों के प्रति पुरवासियों का अनुराग देखकर दुर्योधन को चिन्ता | दुर्योधन का धृतराष्ट्र से पाण्डवों को वारणावत भेज देने का प्रस्ताव | धृतराष्ट्र के आदेश से पाण्डवों की वारणावत यात्रा | दुर्योधन के आदेश से पुरोचन का वारणावत नगर में लाक्षागृह बनाना | पाण्डवों की वारणावत यात्रा तथा उनको विदुर का गुप्त उपदेश | वारणावत में पाण्डवों का स्वागत | लाक्षागृह में निवास और युधिष्ठिर-भीम की बातचीत | विदुर के भेजे हुए खनक द्वारा लाक्षागृह में सुरंग का निर्माण | लाक्षागृह का दाह | विदुर के भेजे हुए नाविक का पाण्डवों को गंगा के पार उतरना | हस्तिनापुर में पाण्डवों के लिए शोक-प्रकाश | कुन्ती के लिए भीम का जल लाना | माता और भाइयों को भूमि पर सोये देखकर भीम को क्रोध आना
हिडिम्बवध पर्व
हिडिम्ब के भेजने पर हिडिम्बा का पाण्डवों के पास जाना | भीम और हिडिम्बासुर का युद्ध | हिडिम्बा का कुन्ती से अपना मनोभाव प्रकट करना | भीम द्वारा हिडिम्बासुर का वध | युधिष्ठिर का भीम को हिडिम्बा-वध से रोकना | हिडिम्बा का भीम के लिए प्रार्थना करना | भीमसेन और हिडिम्बा का मिलन | घटोत्कच की उत्पत्ति | पाण्डवों को व्यासजी के दर्शन
वकवध पर्व
ब्राह्मण परिवार का कष्ट दूर करने हेतु कुन्ती-भीम की बातचीत | ब्राह्मण के चिन्तापूर्ण उद्गार | ब्राह्मणी का पति से जीवित रहने के लिए अनुरोध करना | ब्राह्मण कन्या के त्याग और विवेकपूर्ण वचन | कुन्ती का ब्राह्मण कन्या के पास जाना | कुन्ती का ब्राह्मण का दुख सुनना | कुन्ती और ब्राह्मण की बातचीत | भीम को वकासुर के पास भेजने का प्रस्ताव | भीम का भोजन लेकर वकासुर के पास जाना | भीम और वकासुर का युद्ध | वकासुर वध से भयभीत राक्षसों का पलायन
चैत्ररथ पर्व
पाण्डवों का एक ब्राह्मण से विचित्र कथाएँ सुनना | द्रोण का द्रुपद द्वारा अपमानित होने का वृत्तांत | द्रुपद के यज्ञ से धृष्टद्युम्न और द्रौपदी का जन्म | कुन्ती का पांचाल देश में जाना | व्यासजी का पाण्डवों से द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तांत सुनाना | पाण्डवों की पांचाल यात्रा | अर्जुन द्वारा चित्ररथ गन्धर्व की पराजय एवं दोनों की मित्रता | राजा संवरण का सूर्य कन्या तपती पर मोहित होना | तपती और संवरण की बातचीत | वसिष्ठ की मदद से संवरण को तपती की प्राप्ति | गन्धर्व का ब्राह्मण को पुरोहित बनाने के लिए आग्रह करना | वसिष्ठ के अद्भुत क्षमा-बल के आगे विश्वामित्र का पराभव | शक्ति के शाप से कल्माषपाद का राक्षस होना | कल्माषपाद का शाप से उद्धार | वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद को अश्मक नामक पुत्र की प्राप्ति | शक्ति पुत्र पराशर का जन्म | पितरों द्वारा और्व के क्रोध का निवारण | और्व और पितरों की बातचीत | पुलत्स्य आदि महिर्षियों के पराशर द्वारा राक्षस सत्र की समाप्ति | कल्माषपाद को ब्राह्मणी आंगिरसी का शाप | पाण्डवों का धौम्य को पुरोहित बनाना
स्वयंवर पर्व
पाण्डवों की पांचाल-यात्रा में ब्राह्मणों से बातचीत | ब्राह्मणों का द्रुपद की राजधानी में कुम्हार के पास रहना | स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा | धृष्टद्युम्न का स्वयंवर में आये राजाओं का परिचय देना | राजाओं का लक्ष्यवेध के लिए उद्योग और असफल होना | अर्जुन का लक्ष्यवेध करके द्रौपदी को प्राप्त करना | भीम और अर्जुन द्वारा द्रुपद की रक्षा | कृष्ण-बलराम का वार्तालाप | अर्जुन और भीम द्वारा कर्ण एवं शल्य की पराजय | द्रौपदी सहित भीम-अर्जुन का अपने डेरे पर जाना | कुन्ती, अर्जुन और युधिष्ठिर की बातचीत | पाँचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ विवाह | श्रीकृष्ण की पाण्डवों से भेंट | धृष्टद्युम्न का द्रुपद के पास आना | द्रौपदी के विषय में द्रुपद के प्रश्न
वैवाहिक पर्व
धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुपद के पास पुरोहित भेजना | पाण्डवों और कुन्ती का द्रुपद द्वारा सम्मान | द्रुपद-युधिष्ठिर की बातचीत एवं व्यासजी का आगमन | द्रौपदी का पाण्डवों से विवाह के संबंध में अपने-अपने विचार | व्यासजी का द्रुपद को द्रौपदी-पाण्डवों के पूर्वजन्म की कथा सुनाना | द्रुपद का द्रौपदी-पाण्डवों के दिव्य रूपों की झाँकी करना | द्रौपदी का पाँचों पाण्डवों के साथ विवाह | कुन्ती का द्रौपदी को उपदेश एवं आशीर्वाद
विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व
पाण्डवों के विवाह से दुर्योधन को चिन्ता | धृतराष्ट्र का पाण्डवों के प्रति प्रेम का दिखावा | धृतराष्ट्र-दुर्योधन की बातचीत, शत्रुओं को वश में करने के उपाय | पाण्डवों को पराक्रम से दबाने के लिए कर्ण की सम्मति | भीष्म की दुर्योधन से पाण्डवों को आधा राज्य देने की सलाह | द्रोणाचार्य की पाण्डवों को उपहार भेजने की सम्मति | विदुर की सम्मति, द्रोण-भीष्म के वचनों का समर्थन | धृतराष्ट्र की आज्ञा से विदुर का द्रुपद के पास जाना | पाण्डवों का हस्तिनापुर आना | इन्द्रप्रस्थ नगर का निर्माण | श्रीकृष्ण-बलरामजी का द्वारका प्रस्थान | पाण्डवों के यहाँ नारदजी का आगमन | नारद द्वारा सुन्द-उपसुन्द कथा का प्रस्ताव | सुन्द-उपसुन्द की तपस्या | सुन्द-उपसुन्द द्वारा त्रिलोक विजय | तिलोत्तमा की उत्पत्ति एवं सुन्दोपसुन्द को मोहित करने हेतु प्रस्थान | तिलोत्तमा की वजह से सुन्द-उपसुन्द में लड़ाई | तिलोत्तमा को ब्रह्माजी द्वारा वरदान | पाण्डवों का द्रौपदी के विषय में नियम-निर्धारण
अर्जुन वनवास पर्व
अर्जुन द्वारा गोधन की रक्षा के लिए नियम-भंग | अर्जुन का गंगाद्वार में रुकना एवं उलूपी से मिलन | अर्जुन का मणिपूर में चित्रांगदा से पाणिग्रहण | अर्जुन द्वारा वर्गा अप्सरा का उद्धार | वर्गा की आत्मकथा | अर्जुन का प्रभास तीर्थ में श्रीकृष्ण से मिलना
सुभद्रा हरण पर्व
अर्जुन का सुभद्रा पर आसक्त होना | यादवों की अर्जुन के विरुद्ध युद्ध की तैयारी
हरणा हरण पर्व
अर्जुन और सुभद्रा का विवाह | अर्जुन-सुभद्रा का श्रीकृष्ण के साथ इन्द्रप्रस्थ पहुंचना | द्रौपदी के पुत्र एवं अभिमन्यु के जन्म-संस्कार
खाण्डव दाह पर्व
युधिष्ठिर के राज्य की विशेषता | अग्निदेव का खाण्डववन को जलाना | राजा श्वेतकि की कथा | अर्जुन का अग्निदेव से दिव्य धनुष एवं रथ मांगना | अग्निदेव का अर्जुन और कृष्ण को दिव्य धनुष, चक्र आदि देना | खाण्डववन में जलते हुए प्राणियों की दुर्दशा | देवताओं के साथ श्रीकृष्ण और अर्जुन का युद्ध
मय दर्शन पर्व
खाण्डववन का विनाश और मयासुर की रक्षा | मन्दपाल मुनि द्वारा जरिता-शांर्गिका से पुत्रों की उत्पत्ति | जरिता का अपने बच्चों की रक्षा हेतु विलाप करना | जरिता एवं उसके बच्चों का संवाद | शार्ंगकों के स्तवन से प्रसन्न अग्निदेव का अभय देना | मन्दपाल का अपने बाल-बच्चों से मिलना | इंद्रदेव का श्रीकृष्ण और अर्जुन को वरदान

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