कद्रु द्वारा इंद्रदेव की स्तुति

महाभारत आदि पर्व अध्याय 25 के अनुसार कद्रू द्वारा इंद्रदेव की स्तुति की कथा का वर्णन इस प्रकार है[1]-

उग्रश्रवाजी कहते हैं:- शौनकादि महर्षियों! तदनन्तर इच्छानुसार गमन करने वाले महान पराक्रमी तथा महाबली गरुड़ समुद्र के दूसरे पार अपनी माता के समीप आये। जहाँ उनकी माता विनता बाजी हार जाने से दासी भाव को प्राप्त हो अत्यन्त दुःख से संतप्त रहती थीं। एक दिन अपने पुत्र के समीप बैठी हुई विनयशील विनता को किसी समय बुलाकर कद्रू ने यह बात कही - ‘कल्याणी विनते! समुद्र के भीतर निर्जन प्रदेश में एक बहुत रमणीय तथा देखने में अत्यन्त मनोहर नागों का निवास स्थान है। तू वहाँ मुझे ले चल।' तब गरुड़ की माता विनता सर्पों की माता कद्रू को अपनी पीठ पर ढोने लगी।

सर्पो का मूर्च्छित होना

इधर माता की आज्ञा से गरुड़ भी सर्पों को अपनी पीठ पर चढ़ाकर ले चले। पक्षिराज गरुड़ आकाश में सूर्य के निकट होकर चलने लगे। अतः सर्प सूर्य की किरणों से संतप्त हो मूर्च्छित हो गये।

इंद्र की स्तुति

अपने पुत्रों को इस दशा में देखकर कद्रू इन्द्र की स्तुति करने लगी - ‘सम्पूर्ण देवताओं के ईश्वर! तुम्हें नमस्कार है। बलसूदन! तुम्हें नमस्कार है। ‘सहस्र नेत्रों वाले नमुचिनाशन! शचीपते! तुम्हें नमस्कार है। तुम सूर्य के ताप से संतप्त हुए सर्पों को जल से नहलाकर नौका की भाँति उनके रक्षक हो जाओ। ‘अमरोत्तम! तुम्हीं हमारे सबसे बड़े रक्षक हो। पुरन्दर! तुम अधिक से अधिक जल बरसाने की शक्ति रखते हो।' ‘तुम्हीं मेघ हो, तुम्हीं वायु हो और तुम्हीं आकाश में बिजली बनकर प्रकाशित होते हो। तुम्हीं बादलों को छिन्न-भिन्न करने वाले हो और विद्वान पुरुष तुम्हें ही महामेघ कहते हैं। ‘संसार में जिसकी कहीं तुलना नहीं है, वह भयानक वज्र तुम्हीं हो, तुम्हीं भयंकर गर्जना करने वाले बलाहक (प्रलयकालीन मेघ) हो। तुम्हीं सम्पूर्ण लोकों की सृष्टि और संहार करने वाले हो। तुम कभी परास्त नहीं होते। ‘तुम्हीं समस्त प्राणियों की ज्योति हो। सूर्य और अग्नि भी तुम्हीं हो। तुम आश्चर्यमय महान भूत हो, तुम राजा हो और तुम देवताओं में सबसे श्रेष्ठ हो। ‘तुम्हीं सर्वव्यापी विष्णु, सहस्रलोचन इन्द्र, द्युतिमान् देवता और सबके परम आश्रय हो। देव! तुम्हीं सब कुछ हो। तुम्हीं अमृत हो और परमपूजित सोम हो। ‘तुम मुहूर्त हो, तुम्हीं तिथि हो, तुम्हीं लव तथा तुम्हीं क्षण हो। शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष भी तुमसे भिन्न नहीं हैं।' कला, काष्ठा और त्रुटि सब तुम्हारे ही स्परूप हैं। संवत्सर, ऋतु, मास रात्रि तथा दिन भी तुम्हीं हो। ‘तुम्हीं पर्वत और वनों सहित उत्तम वसुन्धरा हो और तुम्हीं अन्धकार रहित एवं सूर्य सहित आकाश हो। तिमि और तिमिंगिलों से भरपूर, बहुतेरे मगरों और मत्स्यों से व्याप्त तथा उत्ताल तरंगों से सुशोभित महासागर भी तुम्हीं हो।' ‘तुम महान यशस्वी हो।' ऐसा समझकर मनीषी पुरुष सदा तुम्हारी पूजा करते हैं। महर्षिगण निरन्तर तुम्हारा स्तवन करते हैं। तुम यजमान की अभीष्ट सिद्धि करने के लिये यज्ञ में मुदित मन से सोमरस पीते हो और वषट्कारपूर्वक समर्पित किये हुए हविष्य भी ग्रहण करते हो। ‘इस जगत में अभीष्ट फल की प्राप्ति के लिये विप्रगण तुम्हारी पूजा करते हैं। अतुलित बल के भण्डार इन्द्र! वेदांगों में भी तुम्हारी ही महिमा का गान किया गया है। यज्ञपरायण श्रेष्ठ द्विज तुम्हारी प्राप्ति के लिये ही सर्वथा प्रयत्न करके वेदांगों का ज्ञान प्राप्त करते है (यहाँ कद्रू के द्वारा ईश्वर रूप से इन्द्र की स्तुति की गयी है)।'

इन्द्र द्वारा वर्षा से सर्पों की प्रसन्नता

उग्रश्रवाजी कहते हैं: - 'नागमाता कद्रू के इस प्रकार स्तुति करने पर भगवान इन्द्र ने मेघों की काली घटाओं द्वारा सम्पूर्ण आकाश को आच्छादित कर दिया। साथ ही मेघों को आज्ञा दी - तुम सब शीतल जल की वर्षा करो।’ आज्ञा पाकर बिजलियों से प्रकाशित होने वाले उन मेघों ने प्रचुर जल की वृष्टि की। वे परस्पर अत्यन्त गर्जना करते हुए आकाश से निरन्तर पानी बरसाते रहे। जोर-जोर से गर्जने और लगातार असीम जल की वर्षा करने वाले अत्यन्त अद्भुत जलधरों ने सारे आकाश को घेर- सा लिया था। असंख्य धारारूप लहरों से युक्त रह मुदित मन से सोमरस पीते ही और वषट्कार पूर्वक समर्पित किये हुए हविष्य भी ग्रहरण करते हो। भयंकर गर्जन-तर्जन करने वाले वे मेघ बिजली और वायु से काम्पित हो उस समय निरन्तर मूसलाधार आकाश में चन्द्रमा और सूर्य की किरणें भी अदृश्य हो गयी थीं। इन्द्र देव के इस प्रकार वर्षा करने पर नागों को बड़ा हर्ष हुआ। पृथ्वी पर सब ओर पानी ही पानी भर गया। वह शीतल और निर्मल जल रसातल तक पहुँच गया। उस समय सारा भूतल जल की असंख्य तरंगों से आच्छादित हो गया था। इस प्रकार वर्षा में संतुष्ट हुए सर्प अपनी माता के साथ रमणीय द्वीप में आ गये।[2]-


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत आदि पर्व अध्याय 25 श्लोक 1-17 (हिन्दी) कृष्णकोश। अभिगमन तिथि: 30 नवंबर, 2016।
  2. महाभारत आदि पर्व अध्याय 26 श्लोक 1-8। ।

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जतुगृह पर्व
पाण्डवों के प्रति पुरवासियों का अनुराग देखकर दुर्योधन को चिन्ता | दुर्योधन का धृतराष्ट्र से पाण्डवों को वारणावत भेज देने का प्रस्ताव | धृतराष्ट्र के आदेश से पाण्डवों की वारणावत यात्रा | दुर्योधन के आदेश से पुरोचन का वारणावत नगर में लाक्षागृह बनाना | पाण्डवों की वारणावत यात्रा तथा उनको विदुर का गुप्त उपदेश | वारणावत में पाण्डवों का स्वागत | लाक्षागृह में निवास और युधिष्ठिर-भीम की बातचीत | विदुर के भेजे हुए खनक द्वारा लाक्षागृह में सुरंग का निर्माण | लाक्षागृह का दाह | विदुर के भेजे हुए नाविक का पाण्डवों को गंगा के पार उतरना | हस्तिनापुर में पाण्डवों के लिए शोक-प्रकाश | कुन्ती के लिए भीम का जल लाना | माता और भाइयों को भूमि पर सोये देखकर भीम को क्रोध आना
हिडिम्बवध पर्व
हिडिम्ब के भेजने पर हिडिम्बा का पाण्डवों के पास जाना | भीम और हिडिम्बासुर का युद्ध | हिडिम्बा का कुन्ती से अपना मनोभाव प्रकट करना | भीम द्वारा हिडिम्बासुर का वध | युधिष्ठिर का भीम को हिडिम्बा-वध से रोकना | हिडिम्बा का भीम के लिए प्रार्थना करना | भीमसेन और हिडिम्बा का मिलन | घटोत्कच की उत्पत्ति | पाण्डवों को व्यासजी के दर्शन
वकवध पर्व
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चैत्ररथ पर्व
पाण्डवों का एक ब्राह्मण से विचित्र कथाएँ सुनना | द्रोण का द्रुपद द्वारा अपमानित होने का वृत्तांत | द्रुपद के यज्ञ से धृष्टद्युम्न और द्रौपदी का जन्म | कुन्ती का पांचाल देश में जाना | व्यासजी का पाण्डवों से द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तांत सुनाना | पाण्डवों की पांचाल यात्रा | अर्जुन द्वारा चित्ररथ गन्धर्व की पराजय एवं दोनों की मित्रता | राजा संवरण का सूर्य कन्या तपती पर मोहित होना | तपती और संवरण की बातचीत | वसिष्ठ की मदद से संवरण को तपती की प्राप्ति | गन्धर्व का ब्राह्मण को पुरोहित बनाने के लिए आग्रह करना | वसिष्ठ के अद्भुत क्षमा-बल के आगे विश्वामित्र का पराभव | शक्ति के शाप से कल्माषपाद का राक्षस होना | कल्माषपाद का शाप से उद्धार | वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद को अश्मक नामक पुत्र की प्राप्ति | शक्ति पुत्र पराशर का जन्म | पितरों द्वारा और्व के क्रोध का निवारण | और्व और पितरों की बातचीत | पुलत्स्य आदि महिर्षियों के पराशर द्वारा राक्षस सत्र की समाप्ति | कल्माषपाद को ब्राह्मणी आंगिरसी का शाप | पाण्डवों का धौम्य को पुरोहित बनाना
स्वयंवर पर्व
पाण्डवों की पांचाल-यात्रा में ब्राह्मणों से बातचीत | ब्राह्मणों का द्रुपद की राजधानी में कुम्हार के पास रहना | स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा | धृष्टद्युम्न का स्वयंवर में आये राजाओं का परिचय देना | राजाओं का लक्ष्यवेध के लिए उद्योग और असफल होना | अर्जुन का लक्ष्यवेध करके द्रौपदी को प्राप्त करना | भीम और अर्जुन द्वारा द्रुपद की रक्षा | कृष्ण-बलराम का वार्तालाप | अर्जुन और भीम द्वारा कर्ण एवं शल्य की पराजय | द्रौपदी सहित भीम-अर्जुन का अपने डेरे पर जाना | कुन्ती, अर्जुन और युधिष्ठिर की बातचीत | पाँचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ विवाह | श्रीकृष्ण की पाण्डवों से भेंट | धृष्टद्युम्न का द्रुपद के पास आना | द्रौपदी के विषय में द्रुपद के प्रश्न
वैवाहिक पर्व
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