पाण्डवों को पराक्रम से दबाने के लिए कर्ण की सम्मति

महाभारत आदि पर्व के ‘विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व’ के अंतर्गत अध्याय 201 के अनुसार पाण्डवों को पराक्रम से दबाने के लिए कर्ण की सम्मति का वर्णन इस प्रकार है[1]-

कर्ण का दुर्योधन को सलाह देना

कर्ण ने कहा- दुर्योधन! मेरे विचार से तुम्‍हारी यह सलाह ठीक नहीं है। कुरुवर्धन! ऐसे किसी भी उपाय से पाण्‍डवों की वश में नहीं किया जा सकता। वीर! पहले भी तुमने अनेक गुप्‍त उपायों द्वारा पाण्‍डवों को दबाने की चेष्‍टा की है, परंतु उनपर तुम्‍हारा वश नहीं चल सका। भूपाल! वे जब बच्‍चे थे और यहीं तुम्‍हारे पास रहते थे, उस समय उनके पक्ष में कोई नहीं था, तब भी तुम उन्‍हें बाधा पहुँचाने में सफल न हो सके। अब तो वे विदेश में हैं, उनके पक्ष में बहुत-से लोग हो गये हैं और सब प्रकार से उनकी बढ़ती हो गयी है। अत: अब वे कुन्‍तीकुमार तुम्‍हारे बताये हुए उपायों द्वारा वश में आने वाले नहीं हैं। पुरुषार्थ से कभी च्‍युत न होने वाले वीर! मेरा तो यही विचार है। अब वे संकट में नहीं डाले जा सकते। भाग्‍य ने उन्‍हें शक्तिशाली बना दिया है और उनमें अपने बाप-दादों के राज्‍य को प्राप्‍त करने की अभिलाषा जाग उठी है। उनमें आपस में भी फूट डालना सम्‍भव नहीं है। जो (एक राय होकर) एक ही पत्‍नी में अनुरक्‍त हैं, उनमें परस्‍पर विरोध नहीं हो सकता। कृष्‍णा को भी उनकी ओर से फूट डालकर विलग करना असम्‍भव है; क्‍योंकि जब पाण्‍डव लोग भिक्षाभोजी होने के कारण दीन-हीन थे, उस अवस्‍था में कृष्‍णा ने उनका वरण किया है; अब तो वे सम्‍पत्तिशाली होकर स्‍वच्‍छ एवं सुन्‍दर वेष में रहते हैं, अब वह क्‍यों उनकी ओर से विरक्‍त होगी ? प्राय: स्त्रियों का यह अभीष्‍ट गुण है कि एक स्‍त्री में अनेक पुरुषों से सम्‍बन्‍ध स्‍थापित करने की रुचि हो। पाण्‍डवों के साथ रहने में कृष्‍णा को यह लाभ स्‍वत: प्राप्‍त है; अत: उसके मन में भेद नहीं उत्‍पन्‍न किया जा सकता। पाञ्चालराज द्रुपद श्रेष्‍ठ व्रत का पालन करने वाले हैं। वे धन के लोभी नहीं हैं। अत: तुम अपना सारा राज्‍य दे दो, तो भी यह निश्‍चय है कि वे कुन्‍ती पुत्रों का परित्‍याग नहीं करेंगे। इसी प्रकार उनका पुत्र धृष्‍टद्युम्‍न भी गुणवान् तथा पाण्‍डवों का प्रेमी है। अत: मैं उन्‍हें पूर्वोक्‍त उपायों से वश में करने योग्‍य कदापि नहीं मान सकता। राजन्! इस समय हमारे लिये एक ही उपाय काम में लाने योग्‍य है; वे पुरुष श्रेष्‍ठ पाण्‍डव जब तक अपनी जड़ नहीं जमा लेते, तभी तक उन पर प्रहार करना चाहिये। इसी से वे काबू में आ सकते है।’ तात! मैं समझता हूं, तुम्‍हें भी यह राय पसंद होगी। जब तक हमारा पक्ष, बढ़ा-चढ़ा है, और जब तक पाञ्चाल राज का बल हमसे कम है, तभी तक उन पर आक्रमण कर दिया जाय। इसमें दूसरा कुछ विचार न करो। राजन्! गान्‍धारी नन्‍दन! जब तक पाण्‍डवों के पास बहुत-से वाहन, मित्र और कुटुम्‍बी नहीं हो जाते, तभी तक तुम उनके ऊपर पराक्रम कर लो। पृथ्‍वीपते! जब तक पाञ्चाल नरेश अपने महापराक्रमी पुत्रों के साथ हमारे ऊपर चढ़ाई करने का विचार नहीं कर रहे हैं, तभी तक तुम अपना बल विक्रम प्रकट कर लो।[1] इसके लिये तुम्‍हें तभी तक अवसर है, जब तक कि वृष्णिकुलनन्‍दन श्रीकृष्‍ण यदुवंशियों की सेना साथ लिये पाण्‍डवों को राज्‍य दिलाने के उद्देश्‍य से पाञ्चाल राज के घर पर नहीं आ जाते। पाण्‍डवों के लिये श्रीकृष्‍ण की ओर से धन-रत्‍न, भाँति-भाँति के भोग तथा सारा राज्‍य- कुछ भी अदेय नहीं है। महात्‍मा भरत ने पराक्रम से ही यह पृथ्‍वी प्राप्‍त की। इन्‍द्र ने पराक्रम से ही तीनों लोकों पर विजय पायी। राजन्! क्षत्रिय के लिये पराक्रम की ही प्रशंसा की जाती है। नृपश्रेष्‍ठ! पराक्रम करना ही शूरवीरों का स्‍वधर्म है।। राजन्! हम लोग विशाल चतुरंगिणी सेना के द्वारा राजा द्रुपद को कुचलकर शीघ्र ही यहाँ पाण्‍डवों को कैद कर लायें।। न साम से, न दान से और न भेद की नीति से पाण्‍डवों को वश में किया जा सकता है। अत: उन्‍हें पराक्रम से ही नष्‍ट करो। पराक्रम से पाण्‍डवों को जीतकर इस सारी पृथ्‍वी का राज्‍य भोगो। नरेश्‍वर! इसके सिवा दूसरा कोई कार्यसिद्धि का उपाय मैं नहीं देखता।[2]

धृतराष्ट्र द्वारा कर्ण की प्रशंसा

वैशम्‍पायनजी कहते हैं- जनमेजय! कर्ण की बात सुनकर प्रतापी धृतराष्ट्र ने उनकी बड़ी सराहना की और तदनन्‍तर इस प्रकार कहा-‘कर्ण! तुम परम बुद्धिमान्, अस्‍त्र-शस्‍त्रों के ज्ञाता और सूत कुल को आनन्दित करने वाले हो। ऐसा पराक्रम युक्‍त वचन तुम्‍हारे ही योग्‍य है।‘परंतु मेरा विचार है कि भीष्‍म, द्रोण, विदुर और तुम दोनों एक साथ बैठकर पुन: विचार कर लो तथा कोई ऐसी बात सोच निकालो, जो भविष्‍य में भी हमें सुख देनेवाली हो’। महाराज! तदनन्‍तर महायशस्‍वी धृतराष्‍ट्र ने भीष्‍म, द्रोण आदि सम्‍पूर्ण मन्त्रियों को बुलवाकर उनके साथ उस समय विचार आरम्‍भ किया।[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत आदि पर्व अध्याय 201 श्लोक 1-14
  2. 2.0 2.1 महाभारत आदि पर्व अध्याय 201 श्लोक 15-25

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जतुगृह पर्व
पाण्डवों के प्रति पुरवासियों का अनुराग देखकर दुर्योधन को चिन्ता | दुर्योधन का धृतराष्ट्र से पाण्डवों को वारणावत भेज देने का प्रस्ताव | धृतराष्ट्र के आदेश से पाण्डवों की वारणावत यात्रा | दुर्योधन के आदेश से पुरोचन का वारणावत नगर में लाक्षागृह बनाना | पाण्डवों की वारणावत यात्रा तथा उनको विदुर का गुप्त उपदेश | वारणावत में पाण्डवों का स्वागत | लाक्षागृह में निवास और युधिष्ठिर-भीम की बातचीत | विदुर के भेजे हुए खनक द्वारा लाक्षागृह में सुरंग का निर्माण | लाक्षागृह का दाह | विदुर के भेजे हुए नाविक का पाण्डवों को गंगा के पार उतरना | हस्तिनापुर में पाण्डवों के लिए शोक-प्रकाश | कुन्ती के लिए भीम का जल लाना | माता और भाइयों को भूमि पर सोये देखकर भीम को क्रोध आना
हिडिम्बवध पर्व
हिडिम्ब के भेजने पर हिडिम्बा का पाण्डवों के पास जाना | भीम और हिडिम्बासुर का युद्ध | हिडिम्बा का कुन्ती से अपना मनोभाव प्रकट करना | भीम द्वारा हिडिम्बासुर का वध | युधिष्ठिर का भीम को हिडिम्बा-वध से रोकना | हिडिम्बा का भीम के लिए प्रार्थना करना | भीमसेन और हिडिम्बा का मिलन | घटोत्कच की उत्पत्ति | पाण्डवों को व्यासजी के दर्शन
वकवध पर्व
ब्राह्मण परिवार का कष्ट दूर करने हेतु कुन्ती-भीम की बातचीत | ब्राह्मण के चिन्तापूर्ण उद्गार | ब्राह्मणी का पति से जीवित रहने के लिए अनुरोध करना | ब्राह्मण कन्या के त्याग और विवेकपूर्ण वचन | कुन्ती का ब्राह्मण कन्या के पास जाना | कुन्ती का ब्राह्मण का दुख सुनना | कुन्ती और ब्राह्मण की बातचीत | भीम को वकासुर के पास भेजने का प्रस्ताव | भीम का भोजन लेकर वकासुर के पास जाना | भीम और वकासुर का युद्ध | वकासुर वध से भयभीत राक्षसों का पलायन
चैत्ररथ पर्व
पाण्डवों का एक ब्राह्मण से विचित्र कथाएँ सुनना | द्रोण का द्रुपद द्वारा अपमानित होने का वृत्तांत | द्रुपद के यज्ञ से धृष्टद्युम्न और द्रौपदी का जन्म | कुन्ती का पांचाल देश में जाना | व्यासजी का पाण्डवों से द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तांत सुनाना | पाण्डवों की पांचाल यात्रा | अर्जुन द्वारा चित्ररथ गन्धर्व की पराजय एवं दोनों की मित्रता | राजा संवरण का सूर्य कन्या तपती पर मोहित होना | तपती और संवरण की बातचीत | वसिष्ठ की मदद से संवरण को तपती की प्राप्ति | गन्धर्व का ब्राह्मण को पुरोहित बनाने के लिए आग्रह करना | वसिष्ठ के अद्भुत क्षमा-बल के आगे विश्वामित्र का पराभव | शक्ति के शाप से कल्माषपाद का राक्षस होना | कल्माषपाद का शाप से उद्धार | वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद को अश्मक नामक पुत्र की प्राप्ति | शक्ति पुत्र पराशर का जन्म | पितरों द्वारा और्व के क्रोध का निवारण | और्व और पितरों की बातचीत | पुलत्स्य आदि महिर्षियों के पराशर द्वारा राक्षस सत्र की समाप्ति | कल्माषपाद को ब्राह्मणी आंगिरसी का शाप | पाण्डवों का धौम्य को पुरोहित बनाना
स्वयंवर पर्व
पाण्डवों की पांचाल-यात्रा में ब्राह्मणों से बातचीत | ब्राह्मणों का द्रुपद की राजधानी में कुम्हार के पास रहना | स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा | धृष्टद्युम्न का स्वयंवर में आये राजाओं का परिचय देना | राजाओं का लक्ष्यवेध के लिए उद्योग और असफल होना | अर्जुन का लक्ष्यवेध करके द्रौपदी को प्राप्त करना | भीम और अर्जुन द्वारा द्रुपद की रक्षा | कृष्ण-बलराम का वार्तालाप | अर्जुन और भीम द्वारा कर्ण एवं शल्य की पराजय | द्रौपदी सहित भीम-अर्जुन का अपने डेरे पर जाना | कुन्ती, अर्जुन और युधिष्ठिर की बातचीत | पाँचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ विवाह | श्रीकृष्ण की पाण्डवों से भेंट | धृष्टद्युम्न का द्रुपद के पास आना | द्रौपदी के विषय में द्रुपद के प्रश्न
वैवाहिक पर्व
धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुपद के पास पुरोहित भेजना | पाण्डवों और कुन्ती का द्रुपद द्वारा सम्मान | द्रुपद-युधिष्ठिर की बातचीत एवं व्यासजी का आगमन | द्रौपदी का पाण्डवों से विवाह के संबंध में अपने-अपने विचार | व्यासजी का द्रुपद को द्रौपदी-पाण्डवों के पूर्वजन्म की कथा सुनाना | द्रुपद का द्रौपदी-पाण्डवों के दिव्य रूपों की झाँकी करना | द्रौपदी का पाँचों पाण्डवों के साथ विवाह | कुन्ती का द्रौपदी को उपदेश एवं आशीर्वाद
विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व
पाण्डवों के विवाह से दुर्योधन को चिन्ता | धृतराष्ट्र का पाण्डवों के प्रति प्रेम का दिखावा | धृतराष्ट्र-दुर्योधन की बातचीत, शत्रुओं को वश में करने के उपाय | पाण्डवों को पराक्रम से दबाने के लिए कर्ण की सम्मति | भीष्म की दुर्योधन से पाण्डवों को आधा राज्य देने की सलाह | द्रोणाचार्य की पाण्डवों को उपहार भेजने की सम्मति | विदुर की सम्मति, द्रोण-भीष्म के वचनों का समर्थन | धृतराष्ट्र की आज्ञा से विदुर का द्रुपद के पास जाना | पाण्डवों का हस्तिनापुर आना | इन्द्रप्रस्थ नगर का निर्माण | श्रीकृष्ण-बलरामजी का द्वारका प्रस्थान | पाण्डवों के यहाँ नारदजी का आगमन | नारद द्वारा सुन्द-उपसुन्द कथा का प्रस्ताव | सुन्द-उपसुन्द की तपस्या | सुन्द-उपसुन्द द्वारा त्रिलोक विजय | तिलोत्तमा की उत्पत्ति एवं सुन्दोपसुन्द को मोहित करने हेतु प्रस्थान | तिलोत्तमा की वजह से सुन्द-उपसुन्द में लड़ाई | तिलोत्तमा को ब्रह्माजी द्वारा वरदान | पाण्डवों का द्रौपदी के विषय में नियम-निर्धारण
अर्जुन वनवास पर्व
अर्जुन द्वारा गोधन की रक्षा के लिए नियम-भंग | अर्जुन का गंगाद्वार में रुकना एवं उलूपी से मिलन | अर्जुन का मणिपूर में चित्रांगदा से पाणिग्रहण | अर्जुन द्वारा वर्गा अप्सरा का उद्धार | वर्गा की आत्मकथा | अर्जुन का प्रभास तीर्थ में श्रीकृष्ण से मिलना
सुभद्रा हरण पर्व
अर्जुन का सुभद्रा पर आसक्त होना | यादवों की अर्जुन के विरुद्ध युद्ध की तैयारी
हरणा हरण पर्व
अर्जुन और सुभद्रा का विवाह | अर्जुन-सुभद्रा का श्रीकृष्ण के साथ इन्द्रप्रस्थ पहुंचना | द्रौपदी के पुत्र एवं अभिमन्यु के जन्म-संस्कार
खाण्डव दाह पर्व
युधिष्ठिर के राज्य की विशेषता | अग्निदेव का खाण्डववन को जलाना | राजा श्वेतकि की कथा | अर्जुन का अग्निदेव से दिव्य धनुष एवं रथ मांगना | अग्निदेव का अर्जुन और कृष्ण को दिव्य धनुष, चक्र आदि देना | खाण्डववन में जलते हुए प्राणियों की दुर्दशा | देवताओं के साथ श्रीकृष्ण और अर्जुन का युद्ध
मय दर्शन पर्व
खाण्डववन का विनाश और मयासुर की रक्षा | मन्दपाल मुनि द्वारा जरिता-शांर्गिका से पुत्रों की उत्पत्ति | जरिता का अपने बच्चों की रक्षा हेतु विलाप करना | जरिता एवं उसके बच्चों का संवाद | शार्ंगकों के स्तवन से प्रसन्न अग्निदेव का अभय देना | मन्दपाल का अपने बाल-बच्चों से मिलना | इंद्रदेव का श्रीकृष्ण और अर्जुन को वरदान

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