धृतराष्ट्र-दुर्योधन की बातचीत, शत्रुओं को वश में करने के उपाय

महाभारत आदि पर्व के ‘विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व’ के अंतर्गत अध्याय 200 के अनुसार धृतराष्ट्र-दुर्योधन की बातचीत, शत्रुओं को वश में करने के उपाय की कथा का वर्णन इस प्रकार है[1]-

धृतराष्ट्र का दुर्योधन को अपने मन का भाव बताना

धृतराष्‍ट्र ने कहा- बेटा! मैं भी तो वही करना चाहता हूं, जैसा तुम दोनों चाहते हो; परंतु मैं अपनी आकृति से भी विदुर पर अपने मन का भाव प्रकट होने देना नहीं चाहता। इसीलिये विदुर के सामने विशेषत: पाण्‍डवों के गुणों का ही बखान करता हूं, जिससे वह इशारे से भी मेरे मनोभाव को न ताड़ सके। सुयोधन और कर्ण! तुम दोनों समय के अनुसार जो कार्य करना आवश्‍यक समझते हो वह शीघ्र मुझे बताओ।[1]

दुर्योधन का पाण्डवों के प्रति रणनीति बनाना

दुर्योधन बोला-पिताजी! आज अत्‍यन्‍त गुप्‍त रुप से कुछ ऐसे चतुर ब्राह्मणों को नियुक्‍त करना चाहिये, जिनके कार्यों पर हमारा पूर्ण विश्‍वास हो। हमें उनके द्वारा पाण्‍डवों में से कुन्‍ती और माद्री के पुत्रों में फूट डालने की चेष्‍टा करनी चाहिये। अथवा धन की बहुत बड़ी राशि देकर राजा द्रुपद, उनके पुत्र तथा मन्त्रियों को सर्वथा प्रलोभन में डालना चाहिये, जिससे पाञ्चालनरेश कुन्‍तीनन्‍दन युधिष्ठिर को त्‍याग दें-उन्‍हें अपने घर और नगर से निकाल दें। अथवा वे ब्राह्मण लोग पाण्‍डवों के मन में वहीं रहने की रुचि उत्‍पन्‍न करें। वे अलग-अलग इन सभी पाण्‍डवों से कहें कि हस्ति‍नापुर का निवास आप लोगों के लिये अत्‍यन्‍त हानिकारक होगा। इस प्रकार ब्राह्मणों द्वारा बुद्धि भेद उत्‍पन्‍न कर देने पर सम्‍भव है, पाण्‍डव लोग अपने मन में वहीं (पाञ्चाल देश में ही) रहने का निश्‍चय कर लें। अथवा कुछ ऐसे मनुष्‍य भेजे जायं, तो उपाय ढूंढ़ निकालने में चतुर तथा कार्यकुशल हों और प्रेमपूर्वक बातें करके कुन्‍ती पुत्रों में परस्‍पर फूट डाल दें। अथवा कृष्‍णा को ही इस प्रकार बहका दें कि वह अपने पतियों का परित्‍याग कर दे। अनेक पति होने के कारण (उसका किसी में भी सुद्दढ़ अनुराग नहीं हो सकता; अत:) उनका परित्‍याग कराना सरल है। अथवा वे लोग पाण्‍डवों को ही द्रौपदी की ओर से विलग कर दें और ऐसा होने पर द्रौपदी को उनकी ओर से विरक्‍त बना दें। अथवा राजन्! उपाय कुशल मनुष्‍य छिपे रहकर भीमसेन का ही वध कर डालें; क्‍योंकि वही पाण्‍डवों में सबसे अधिक बलवान् है। उसी का आश्रय लेकर कुन्‍तीनन्‍दन युधिष्ठिर पहले से हमें कुछ नहीं समझते। वह बड़े तीखे स्‍वभाव का और शूरवीर है। वही पाण्‍डवों का सबसे बड़ा सहारा है। राजन्! उसके मारे जाने पर पाण्‍डवों का बल और उत्‍साह नष्‍ट हो जायगा। फिर वे राज्‍य लेने का प्रयत्‍न नहीं करेंगे। भीमसेन ही उनका सबसे बड़ा आश्रय है। भीमसेन को पृष्‍ठ रक्षक पाकर ही अर्जुन युद्ध में अजेय बने हुए हैं। यदि भीम न हों तो वे रणभूमि में कर्ण की एक चौथाई के बराबर भी नहीं हो सकेंगे।भीमसेन के बिना अपनी बहुत बड़ी दुर्लभता का अनुभव करके वे दुर्बल पाण्‍डव हमें अपने से बलवान जानकर राज्‍य लेने का प्रयत्‍न नहीं करेंगे। राजन्! अथवा यदि वे यहाँ आकर हमारी आज्ञा के अधीन होकर रहेंगे, तब हम नीतिशास्‍त्र के अनुसार उनके विनाश के कार्य में लग जायंगे। अथवा देखने में सुन्‍दर युवती स्त्रियों द्वारा एक-एक पाण्‍डव को लुभाया जाय और इस प्रकार कृष्‍णा का मन उनकी ओर से फेर दिया जाय।[1]
अथवा पाण्‍डवों को यहाँ बुला लाने के लिये राधा नन्‍दन कर्ण को भेजा जाय और यहाँ आकर विश्‍वसनीय कार्यकर्ताओं द्वारा वि‍भिन्‍न उपायों से उन सबको मार गिराया जाय। पिताजी! इन उपायों में से जो भी आपको निर्दोष जान उसी से पहले काम लीजिये; क्‍योंकि समय बीता जा रहा है जब तक राजाओं में श्रेष्‍ठ द्रुपद पर उनका पूरा विश्‍वास नहीं बन जाता, तभी तक उन्‍हें मारा जा सकता है। पूरा विश्‍वास जम जाने पर तो उन्‍हें मारना असम्‍भव हो जायगा। पिताजी! शत्रुओं को वश में करने के लिये ये ही उपाय मेरी बुद्धि में आते हैं; मेरा यह विचार भला है या बुरा, यह आप जानें। अथवा कर्ण! तुम्‍हारी क्‍या राय है ?[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 महाभारत आदि पर्व अध्याय 200 श्लोक 1-16
  2. महाभारत आदि पर्व अध्याय 200 श्लोक 17-20

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जतुगृह पर्व
पाण्डवों के प्रति पुरवासियों का अनुराग देखकर दुर्योधन को चिन्ता | दुर्योधन का धृतराष्ट्र से पाण्डवों को वारणावत भेज देने का प्रस्ताव | धृतराष्ट्र के आदेश से पाण्डवों की वारणावत यात्रा | दुर्योधन के आदेश से पुरोचन का वारणावत नगर में लाक्षागृह बनाना | पाण्डवों की वारणावत यात्रा तथा उनको विदुर का गुप्त उपदेश | वारणावत में पाण्डवों का स्वागत | लाक्षागृह में निवास और युधिष्ठिर-भीम की बातचीत | विदुर के भेजे हुए खनक द्वारा लाक्षागृह में सुरंग का निर्माण | लाक्षागृह का दाह | विदुर के भेजे हुए नाविक का पाण्डवों को गंगा के पार उतरना | हस्तिनापुर में पाण्डवों के लिए शोक-प्रकाश | कुन्ती के लिए भीम का जल लाना | माता और भाइयों को भूमि पर सोये देखकर भीम को क्रोध आना
हिडिम्बवध पर्व
हिडिम्ब के भेजने पर हिडिम्बा का पाण्डवों के पास जाना | भीम और हिडिम्बासुर का युद्ध | हिडिम्बा का कुन्ती से अपना मनोभाव प्रकट करना | भीम द्वारा हिडिम्बासुर का वध | युधिष्ठिर का भीम को हिडिम्बा-वध से रोकना | हिडिम्बा का भीम के लिए प्रार्थना करना | भीमसेन और हिडिम्बा का मिलन | घटोत्कच की उत्पत्ति | पाण्डवों को व्यासजी के दर्शन
वकवध पर्व
ब्राह्मण परिवार का कष्ट दूर करने हेतु कुन्ती-भीम की बातचीत | ब्राह्मण के चिन्तापूर्ण उद्गार | ब्राह्मणी का पति से जीवित रहने के लिए अनुरोध करना | ब्राह्मण कन्या के त्याग और विवेकपूर्ण वचन | कुन्ती का ब्राह्मण कन्या के पास जाना | कुन्ती का ब्राह्मण का दुख सुनना | कुन्ती और ब्राह्मण की बातचीत | भीम को वकासुर के पास भेजने का प्रस्ताव | भीम का भोजन लेकर वकासुर के पास जाना | भीम और वकासुर का युद्ध | वकासुर वध से भयभीत राक्षसों का पलायन
चैत्ररथ पर्व
पाण्डवों का एक ब्राह्मण से विचित्र कथाएँ सुनना | द्रोण का द्रुपद द्वारा अपमानित होने का वृत्तांत | द्रुपद के यज्ञ से धृष्टद्युम्न और द्रौपदी का जन्म | कुन्ती का पांचाल देश में जाना | व्यासजी का पाण्डवों से द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तांत सुनाना | पाण्डवों की पांचाल यात्रा | अर्जुन द्वारा चित्ररथ गन्धर्व की पराजय एवं दोनों की मित्रता | राजा संवरण का सूर्य कन्या तपती पर मोहित होना | तपती और संवरण की बातचीत | वसिष्ठ की मदद से संवरण को तपती की प्राप्ति | गन्धर्व का ब्राह्मण को पुरोहित बनाने के लिए आग्रह करना | वसिष्ठ के अद्भुत क्षमा-बल के आगे विश्वामित्र का पराभव | शक्ति के शाप से कल्माषपाद का राक्षस होना | कल्माषपाद का शाप से उद्धार | वसिष्ठ द्वारा कल्माषपाद को अश्मक नामक पुत्र की प्राप्ति | शक्ति पुत्र पराशर का जन्म | पितरों द्वारा और्व के क्रोध का निवारण | और्व और पितरों की बातचीत | पुलत्स्य आदि महिर्षियों के पराशर द्वारा राक्षस सत्र की समाप्ति | कल्माषपाद को ब्राह्मणी आंगिरसी का शाप | पाण्डवों का धौम्य को पुरोहित बनाना
स्वयंवर पर्व
पाण्डवों की पांचाल-यात्रा में ब्राह्मणों से बातचीत | ब्राह्मणों का द्रुपद की राजधानी में कुम्हार के पास रहना | स्वयंवर सभा का वर्णन एवं धृष्टद्युम्न की घोषणा | धृष्टद्युम्न का स्वयंवर में आये राजाओं का परिचय देना | राजाओं का लक्ष्यवेध के लिए उद्योग और असफल होना | अर्जुन का लक्ष्यवेध करके द्रौपदी को प्राप्त करना | भीम और अर्जुन द्वारा द्रुपद की रक्षा | कृष्ण-बलराम का वार्तालाप | अर्जुन और भीम द्वारा कर्ण एवं शल्य की पराजय | द्रौपदी सहित भीम-अर्जुन का अपने डेरे पर जाना | कुन्ती, अर्जुन और युधिष्ठिर की बातचीत | पाँचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ विवाह | श्रीकृष्ण की पाण्डवों से भेंट | धृष्टद्युम्न का द्रुपद के पास आना | द्रौपदी के विषय में द्रुपद के प्रश्न
वैवाहिक पर्व
धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुपद के पास पुरोहित भेजना | पाण्डवों और कुन्ती का द्रुपद द्वारा सम्मान | द्रुपद-युधिष्ठिर की बातचीत एवं व्यासजी का आगमन | द्रौपदी का पाण्डवों से विवाह के संबंध में अपने-अपने विचार | व्यासजी का द्रुपद को द्रौपदी-पाण्डवों के पूर्वजन्म की कथा सुनाना | द्रुपद का द्रौपदी-पाण्डवों के दिव्य रूपों की झाँकी करना | द्रौपदी का पाँचों पाण्डवों के साथ विवाह | कुन्ती का द्रौपदी को उपदेश एवं आशीर्वाद
विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व
पाण्डवों के विवाह से दुर्योधन को चिन्ता | धृतराष्ट्र का पाण्डवों के प्रति प्रेम का दिखावा | धृतराष्ट्र-दुर्योधन की बातचीत, शत्रुओं को वश में करने के उपाय | पाण्डवों को पराक्रम से दबाने के लिए कर्ण की सम्मति | भीष्म की दुर्योधन से पाण्डवों को आधा राज्य देने की सलाह | द्रोणाचार्य की पाण्डवों को उपहार भेजने की सम्मति | विदुर की सम्मति, द्रोण-भीष्म के वचनों का समर्थन | धृतराष्ट्र की आज्ञा से विदुर का द्रुपद के पास जाना | पाण्डवों का हस्तिनापुर आना | इन्द्रप्रस्थ नगर का निर्माण | श्रीकृष्ण-बलरामजी का द्वारका प्रस्थान | पाण्डवों के यहाँ नारदजी का आगमन | नारद द्वारा सुन्द-उपसुन्द कथा का प्रस्ताव | सुन्द-उपसुन्द की तपस्या | सुन्द-उपसुन्द द्वारा त्रिलोक विजय | तिलोत्तमा की उत्पत्ति एवं सुन्दोपसुन्द को मोहित करने हेतु प्रस्थान | तिलोत्तमा की वजह से सुन्द-उपसुन्द में लड़ाई | तिलोत्तमा को ब्रह्माजी द्वारा वरदान | पाण्डवों का द्रौपदी के विषय में नियम-निर्धारण
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सुभद्रा हरण पर्व
अर्जुन का सुभद्रा पर आसक्त होना | यादवों की अर्जुन के विरुद्ध युद्ध की तैयारी
हरणा हरण पर्व
अर्जुन और सुभद्रा का विवाह | अर्जुन-सुभद्रा का श्रीकृष्ण के साथ इन्द्रप्रस्थ पहुंचना | द्रौपदी के पुत्र एवं अभिमन्यु के जन्म-संस्कार
खाण्डव दाह पर्व
युधिष्ठिर के राज्य की विशेषता | अग्निदेव का खाण्डववन को जलाना | राजा श्वेतकि की कथा | अर्जुन का अग्निदेव से दिव्य धनुष एवं रथ मांगना | अग्निदेव का अर्जुन और कृष्ण को दिव्य धनुष, चक्र आदि देना | खाण्डववन में जलते हुए प्राणियों की दुर्दशा | देवताओं के साथ श्रीकृष्ण और अर्जुन का युद्ध
मय दर्शन पर्व
खाण्डववन का विनाश और मयासुर की रक्षा | मन्दपाल मुनि द्वारा जरिता-शांर्गिका से पुत्रों की उत्पत्ति | जरिता का अपने बच्चों की रक्षा हेतु विलाप करना | जरिता एवं उसके बच्चों का संवाद | शार्ंगकों के स्तवन से प्रसन्न अग्निदेव का अभय देना | मन्दपाल का अपने बाल-बच्चों से मिलना | इंद्रदेव का श्रीकृष्ण और अर्जुन को वरदान

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