स्वागत! स्वागत! आओ प्यारे!
दर्शन दो नयनोंके तारे॥
बालक की मधुरी हाँसी में। मोहन की मीठी बाँसी में।
मित्रोंकी निःस्वार्थ प्रीति में। प्रेमीगण की मिलन-रीति में॥
नारी के कोमल अन्तर में। योगी के हृदयायन्तरमें॥
वीरों के रणभूमि-मरण में। दीनों के संताप-हरण में॥
कर्मठके कर्म-प्रवाह में। साधक के साविक उछाह में।
भक्तों के भगवान-शरण में। ज्ञानवान के आत्म-रमण में॥
संतों की शुचि सरल भक्ति में। अग्रिदेव की दाह-शक्ति में॥
गंगा की पुनीत धारा में। पृथ्वी-पवन, व्योम-तारा में॥
भास्कर के प्रखर प्रकाशमें। शशधर के शीतल विकास में॥
कोकिल के कोमल सुस्वरमें। मा मयूरी के का-रव में॥
विकसित पुष्पों की कलियों में। काले नखराले अलियों में॥
सबमें तुम्हें देखते सारे। पर न पकड़ पाते मतवारे॥
निज पहचान बता दो प्यारे। छिपना छोड़ो, जग उजियारे॥
स्वागत! स्वागत! आओ प्यारे!
मेरे जीवन के ‘ध्रुवतारे’॥