स्वामी मिलै नंद कौ लाला,
रूप-गुननि में सब तें आला।
पहिरैं गुंजा-मोती माला,
सोभा कौ सिंगार॥-(अब तो०)
अग-जग सब ही कौं सुख देवै,
काऊ तें न कबहुँ कछु लेवै।
तन-मन सों भरतारहि सेवै,
जानि-सार-कौ-सार॥-(अब तो०)
बिनय भरी सुनि ढाढ़ी बानी,
कीर्ति कृपामयि हिय हुलसानी।
दिखरायौ लाली-मुख रानी,
काजर-रेख सँवार॥-(अब तो०)
देखि कुँवारि, सो अति हरषायौ,
बोल्यौ-मैं सब ही कछु पायौ॥
बोल्यौ-मैं जीवन-फल पायो।
अब तो केवल लाली कौ दरसन नित भायौ,
सो मिलै भीख सरकार॥-(अब तो०)
बाँधि मँढ़ैया रहूँ यहीं पर,
होऊँ नित निहाल दरसन कर।
लाली कौ मुख मधुर मनोहर,
मिलै मोय अधिकार॥-(अब तो०)