स्याम भए ऐसे रस-नागर।
दिन द्वै घाट रोकि जमुना कौ, अब तुम भए उजागर।।
काँधैं कामरि, हाथ लकुटिया, गाइ चरावन जाते।
दही भात की छाक मँगावत, ग्वालनि सँग मिलि खाते।।
अब तुम कर नवल सी लीन्हें, पीतांबर कटि सोहत।
सूर स्याम अब नवल भए तुम नवल नारि-मन मोहत।।1543।।