हम तिय मृतक जियत ससि साखी।
तुम अलि रवि हित कमल बिसेषी हरे विकल मधु साखी।।
मुरली अधर सुधा धुनि सुनि, सुख सच्यौ स्रवन दुवार।
मधुहारी अक्रूर बधिक मुख, अवधि लगाई छार।।
मन कौ विरह नैन कह जानै, स्रुति मन तुही सुनावै।
‘सूर’ भस्म अँग लगी कुटिलता, तउ जोगै गुन गावै।।3846।।