हनुमान अंगद के आगैं लंक-कथा सब भाषी।
अंगद कही भली तुम कीनी, हम सबकी पति राखी।
हरषवंत ह्वै चले तहाँ तैं मग मैं विलम न लाई।
पहुँचे आइ निकट रघुवर कैं, सुग्रिव आयौ धाई।
सबनि प्रनाम कियौ रघुपति कौं अगद वचन सुनायौ।
सूरदास प्रभु-पद-प्रताप करि, हनू सीय सुधि ल्यायौ॥102॥