हम सरघा ब्रजनाथ सुधानिधि, राखे बहुत जतन करि सचि सचि।
मन मुख भरि भरि, नैन ऐन ह्वै, उर प्रति कमल कोस लौ खचि खचि।।
सुभग सुमन सब अंग अमृतमय, तहाँ तहाँ राखति चित रचि रचि।
मोहन मदन सुरूप सुजस रस, करत सु गुप्त प्रेम रस पचि पचि।।
'सूरदास' पीयूष लागि तिहिं, पठयौ नृपति तेउ गए बचि बचि।
अब सोई मधु हरयौ सुफलक सुत, दुसह दाह जु उठत तन तचि तचि।। 3400।।