हरषि स्याम पिय बाहँ गही।
चूक परी हमको यह बकसौ, आवन कौ कहि गए सही।।
रिसनि उठी झहराइ, झटकि भुज, छुवत कहा पिय सरम नही।
भवन गई आतुर ह्वै नागरि, जे आई सुख सबै कही।।
मेरै महल आजु तै आवहु, सौह नंद की कोटिक ही।
'सूर' स्याम जब लो जग जीवो, मिलौ नही बरु काम दही।।2692।।