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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौरी [98] सूरदासजी के शब्दों में श्रीराधा कह रही हैं- सखी! मैं नहीं जानती कि श्यामसुन्दर मुझसे कब मिले। अरी सखी! मैं तेरी शपथ करके कहती हूँ कि उन्हें (मैं) अब भी नहीं पहचानती। (वे गायों के) गोष्ठ में मिले या गोरस बेचते समय, अभी मिले या कल (पता नहीं), किंतु सखी! तू कहती क्या है? वे तो मेरे नेत्रों से कभी ओझल होते ही नहीं! एक पल के लिये भी श्यामसुन्दर मुझसे पृथक् नहीं होते; (किंतु मैंने) उन्हें भली प्रकार देखा नहीं है, (वे) मेरे स्वामी सदा मेरे नेत्रों में ही निवास करते हैं, हटाने से (भी) हटते नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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