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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग आसावरी [122] सूरदासजी के शब्दों में श्रीराधा कह रही ह-सखी! जब से कृष्ण नाम कानों से सुना है, तब से मैं (अपने) घर को भूल पगली-सी हो गयी हूँ। (मेरे) नेत्र बार-बार आसुँओं से भरे आते हैं, चित्त में शान्ति नहीं है, सीधी (ठिकाने की) बात बोली नहीं जाती और (शरीर की) दशा कुछ दूसरी ही हो गयी है। कौन माता, कौन पिता, कौन बहिन और कौन भाई, कैसा विचार और कैसी एकाग्रता (यह सब भूल गयी) । मुझे तो कामदेव ने मार डाला। जब से श्यामसुन्दर मेरी दृष्टि में पड़े हैं, तब से (सारे) काम और घर प्रतिकूल तथा लोक-लज्जा एवं कुल की प्रतिष्ठा झुक गयी— चली गयी है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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