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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कल्यान[313] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्र अत्यन्त रस-लम्पट हो गये हैं; इन्होंने श्यामसुन्दर की सौन्दर्य-सुधा के रस का आस्वादन किया और लुब्ध होकर वहीँ चले गये। जैसे कुलटा स्त्री को अपना घर अच्छा नहीं लगता, परपुरुष के प्रति ही वह अनुरक्त रहती ह-यदि कभी (घर) आती भी है तो (वह इस भाँति) अत्यन्त व्याकुल होती है, जैसे द्विरागमन होकर नव-वधू आयी हो और फिर उधर को ही उसी प्रकार दौड़ती है जैसे धनुष से बाण छूटता है, उसी प्रकार ये (मेरे नेत्र भी) सुन्दर श्याम शरीर वाले, (उन) मोहन के रूप की शोभा में जाकर धँस-गड़ गये। (वे) इस प्रकार वहीं जाने को आतुर रहते हुए मुझसे उदासीन बने रहते हैं। वे श्यामसुन्दर की सौन्दर्य छटा पर रीझकर मन, वाणी एवं कर्म से उनके ही हो गये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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