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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिहागरौ[163] (एक गोपी कह रही ह-) सखी! मेरे चित्त में यही चिन्ता हो रही है। सखी! (इस मेरे) मन के ढंग (तो) सुनो; जिस प्रकार (उसने) मेरा अनादर (उपेक्षा) किया। पहले ही उसने यह किया कि स्वयं तो गया ही, पाँचों – (ज्ञानेन्द्रिय-) को भी साथ ले गया; और मुझसे शत्रुता तथा श्यामसुन्दर से प्रेम करके इस प्रकार (उसने) मुझसे लड़ाई-झगड़ा किया। जैसे-तैसे, नेत्र मेरे साथ लिपटे रहे, (अन्त में) उनमें भी भेद-बुद्धि भर दी। सूरदासजी कहते ह-सुनो, इन – (नेत्र-) को अपना बनाये हुए अब तक (वह) ह्रदय में था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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