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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग [192] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी!) ये (मेरे नेत्र) ढीठ हुए घूमते हैं, मुझसे (तो) रुष्ट हुए मौन रहते हैं श्याम के साथ खेलते-बोलते हैं। इनकी निष्ठुरता क्या कहूँ, स्वप्न में भी (ये) यहाँ नहीं आते; श्यामसुन्दर के (पास) जाकर उन्हीं पर लुब्ध हुए उन्हीं का गुणगान करते हैं। जैसे (इन्होंने) मुझे त्याग दिया हो, (इस प्रकार ये) फिर कभी लौटकर (भी मेरी ओर) नहीं देखते हैं! जो भला है, उसका तो भला ही होगा, पर वे तो मार्ग (नियम) बिगाड़ते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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