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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिहागरौ[249] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्र (तो) श्यामसुन्दर की शोभा में भटक गये हैं। अरी सखी! वे अत्यन्त ही बेहाल (व्याकुल) हो रात-दिन खड़े (देखने में तत्पर) ही रहते हैं। हमारे पास से तो वहाँ लूट – (का माल) लेने गये थे, (किंतु) वहाँ (वे) बन्धन में पड़ गये (बाँध लिये गये); अतः अपने किये का फल (उन्होंने) तुरंत (ही) पा लिया। मैं तो उन्हें घूँघट की आड़ में (सुरक्षित) रखती थी, (वहाँ वे) दूसरे के वश में होकर निर्निमेष बने रहते हैं; उन्हें (वहाँ) दुःख है या सुख-यह जाना नहीं जाता। तुम्हीं कहो कि तीनों लोकों में ऐसा कौन है, जो समुद्र की थाह ले आये (श्याम की शोभा समुद्र के समान अथाह है, उसमें जाकर नेत्र वहीं डूब गये) । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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