विषय सूची
अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल [87] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी!) क्या करूँ, विधाता मेरे हाथ (वश) – में नहीं है। वह (श्यामसुन्दर को देखने का) आनन्द और यह हमारे शरीर की (विवश) अवस्था! नेत्रों (की असमर्थता) – के रोष से स्वयं ही मैं मर (कष्ट पा) रही हूँ। जब (केवल) दो (अपने) नेत्र देखती हूँ, तब सोचती हूँ, इस- (मूर्ख ब्रम्हा— ) ने सारे अंग बनाये किस प्रकार। अतः (मन-ही-मन कुढ़ती रहती हूँ) चारों ओर दृष्टि दौड़ाती हूँ यह देखने के लिये कि ऐसा कौन है, जो उसे पकड़ लाये। परंतु करूँ क्या, वह बड़ा समझदार है, उसकी चतुरता भी अच्छी है, सभी उसे जगत्पिता कहते हैं; (किंतु) श्यामसुन्दर का व्रज में अवतार होगा, यह जानकर भी उसने हमें बहुत-से नेत्र (क्यों) नहीं दिये (यह हमारी समझ में नहीं आता) । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |