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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावलजान देहु गोपाल बुलाई की । (एक ब्राम्हण-पत्नी अपने पति से कह रही है- ) (मुझे) ‘गोपाल ने बुलाया है, जाने दो; प्राणों के लोभ से ह्रदय की प्रीति अब छिपायी नहीं जा सकती। (तुम) चाहे किसी भी प्रकार का भय (मुझे) दो और दृढ़ बन्धनों में बाँधकर रोक रखो, किंतु जब तक फेफड़े से श्वास आता-जाता है, (तब तक) यह (श्याम से प्रेम का) हठ अब (भला) कैसे छूट सकता है। मन, वचन तथा क्रिया के द्वारा अपने मन की सच्ची बात कहती हूँ कि (रोके जाने पर भी मैं) शरीर त्यागकर हरि से जा मिलूँगी, (अतः) वहाँ (उनके पास) जाने से (मुझे) क्यों रोकते हो?’ सूरदासजी कहते हैं- सुनो, (प्रभु से मिलने का) अवसर बीत जाने पर फिर यह शरीर (रहकर भी) क्या करे, (मोहन के) वियोग-दुःख से प्राणों के निकल जाने पर (इस शरीर के) सभी स्नेह (बन्धन) झूठे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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