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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग आसावरी [130] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कहती ह-(सखी!) श्रीराधा नन्दनन्दन में अनुरक्त हैं। उनके ह्रदय में भय या चिन्ता कुछ भी नहीं, वे तो श्यामसुन्दर के प्रेम के आनन्द में निमग्न हैं। (उन दोनों के) ह्रदय चूने-हल्दी अथवा दूध-पानी के समान एक हो गये हैं और दोनों ओर का (सब) संकोच दूर हो गया है। (उन्होंने अपने) शरीर, चित्त, प्राण (सब कुछ श्यामसुन्दर को) समर्पित कर दिये हैं, प्रेम (उनके) अंग-प्रत्यंगों में धँस गया है। व्रजनारियाँ बार-बार उन्हें देख और प्रेमविवश होकर शरीर की सुधि भूल गयी हैं। उनका चित्त स्वामी – (श्रीकृष्ण— ) से (ऐसा) लग गया है, मानो सोते से जाग गयी हों। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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