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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग नट[247] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी!) श्याम के शरीर की शोभा तो नट के खेल – (स्वाँग-) के समान (बदलती रहती) है। नेत्रों से सब कोई सोने, मानिक तथा मोतियों का श्रृंगार प्रत्यक्ष देखते हैं; (किंतु) क्षण भर में ही वह (सब) मिट जाता है, (तब) नट कुछ दूसरा ही विचार (संकल्प) कर लेता है। उसी प्रकार ह्रदय में (श्यामसुन्दर की) शोभा (भी) और-की-और (क्षण-क्षण नवीन) होती अपार चरित्र किया करती है। (नेत्र) कुछ पायंइ तब, जब (वह शोभा) हाथ (पकड़ में) आये; वहाँ तो दृष्टि टिकती ही नहीं। (ये) नेत्र व्यर्थ भूले रहते हैं, इनसे कोई (यह) बात कह दे। (ये) रात-दिन श्याम के साथ ही रहते आनन्द में समाते नहीं हैं; (किंतु) हमसे (तो) जब-जब (ये) मिले, तब-तब (इनका) शरीर अत्यन्त विह्वल (व्याकुल देखा गया) था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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