विषय सूची
अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री [218] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी!) मेरे नेत्र हिरन बन गये हैं, (मोहन की) वंशी ध्वनि से मस्त होकर (ये) यौवन रूपी वन से निकलकर चल पड़े। (श्याम का) सौन्दर्य (इनके लिये) व्याध हैं, (उनके) कुण्डल की कान्ति अग्नि-ज्वाला है और (उनकी करधन-) की ध्वनि घण्टानाद है, (इनसे) व्याकुल होकर एकटक (उन्हें) देखते हैं और गुरुजनों को त्याग देने में इन्हें संतोष है। (श्याम की) भौंहें धनुष – (के समान), नेत्र (ही) बाण-संधान और (उनके) देखने की मनोहर भंगी ही चोट करना है। (इतने पर भी) ये (अपने) स्थान पर स्थिर रहे, हटते नहीं; (श्यामसुन्दर के) मंद हास्य के सामने (इन्होंने) सिर झुका दिया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |