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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री[24] ग्वालिन घर चली तो गयी, (किंतु) उस (वहाँ) तनिक भी अच्छा नहीं लगता। माता, पिता तथा दूसरे गुरुजन उससे पूछते तो कुछ हैं, (पर वह) उत्तर और-का-और (सर्वथा भिन्न) देती है। वे गालियाँ देते हैं, (उन्हें) यह तनिक (भी) सुनती नहीं; (क्योंकि) इसके कान (तो) श्यामसुन्दर के शब्दों से भरे हैं। (उसके) नेत्र किसी को देखते नहीं, जैसे (वे) कहीं अधूरे हों (उनके देखने की शक्ति में कोई दोष आ गया हो) । (वह) श्रीहरि के गुण ही (अपनी) वाणी से कहती है और उधर (श्याम के समीप) ही चरणों को चलातीं (वहीं जाने की इच्छा करती) है। सूरदासजी कहते हैं कि चाहे कोई उसे कितना भी समझावे, (पर) उसे तो श्यामसुन्दर को छोड़कर दूसरा (कोई) अच्छा लगता (ही) नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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