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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग भैरव[264] सूरदासजी के शब्दों में एक अन्य गोपी कह रही ह-सखी! मुझसे एक बात सुन! तू क्यों बार-बार पश्चात्ताप करती है, (अरी) भाग्य के बिना (तो) कुछ पाया नहीं जा सकता। सखी! नेत्रों ने रात-दिन, प्रत्येक क्षण, प्रत्येक घड़ी, प्रत्येक प्रहर (श्यामसुन्दर की) बहुत सेवा की और जिसकी मन, वचन, कर्म से ऐसी दृढ़ता है, इनकी (यह) जाति धन्य है, धन्य है। श्यामसुन्दर (इन पर) द्रवित होकर इनसे कैसे मिले हैं, जैसे माता पुत्र पर प्रेम करके (उससे) मिलती है। हमारे स्वामी तो स्वभाव से बड़े हैं, वे तीनों लोकों के पिता और कृपा के सागर हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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