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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री [93] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है- (सखी!) यदि (मोहन को) देखूँ, तब (तो उनसे) प्रेम करूँ। रात-दिन (उनके) साथ (ही) रहती (और) घूमती हूँ, चित्त से तनिक भी भूलती नहीं हूँ। (यह बात) मेरे छिपाये कैसे छिप सकती है? उनके बिना मैं धैर्य नहीं रख पाती। घनश्याम जहाँ रहते हैं वहीं जाती हूँ, उन्हें एकटक देखते किसी के हटाये नहीं हटूँगी। अरी सखी! सुन, यह मेरी दशा है; अतः बता, अब क्या करूँ? मैं श्यामसुन्दर को नेत्र भरकर (भली प्रकार) देखूँ- अपनी इस लालसा को कैसे पूरी करूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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