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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग मलार[240] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी! ये) नेत्र (मेरे) ऐसे पीछे पड़े हैं कि श्यामसुन्दर की तनिक-सी मूर्ति (जो) ह्रदय में रह गयी है, उसी को देख-देखकर जैसे (यह रह कैसे गयी? इस) डाह में मरे जाते हों। मन (तो) इन्द्रियों को लेकर बद्धि, सोचने तथा समझने की शक्ति सहित चला (ही) गया था; (अब) जिन – (नेत्र-) की हम सदा आशा लगाये रहती थीं, उन्होंने (भी) जितना बना, उतना दुःख (ही) दिया। स्वयं चले गय-इसकी चर्चा कौन करता है; (किंतु) और भी धृष्टता (यह) करते हैं कि तनिक-सी (श्यामसुन्दर की) शोभा की चमक (जो) ह्रदय में रह गयी है, उसे भी ठिकाने लगा रहे (नष्ट कर रहे) हैं। ये तो चले गये थे, (अब) आये ही इसी कार्य से हैं, और (जी) भरकर (आँसू के रूप में) उसे गिरा रहे हैं। ऐसा कौन है, जिससे इन नेत्रों की महिमा (दोष) कही जाय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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