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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग भैरव [174] सूरदासजी के शब्दों में गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्र तो हरि के ही पीछे पड़े हैं, (उन) नटवर वेश बनाये श्यामसुन्दर पर रीझ (उनसे) अत्यन्त आतुर होकर मिले हैं। (वे) पलक नहीं गिराते, सदा एकटक ही (उन्हें देखते) रहते हैं, रात-दिन – (का भेद) न जानते हुए उनके प्रत्येक अंग की शोभा देखते हैं और उसी – (शोभ-) में रूचि मानते हैं। सखी! (मेरे ये) नेत्र परवश हो गये हैं, उन्हें इन्हीं – (मोहन-) ने वश में कर लिया है। हमारे स्वामी को इन्हों – (नेत्र-) ने अपनी सेवा से प्रसन्न कर लिया और उन्होंने (प्रसन्न होकर) इन्हें अपना बना लिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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