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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग[272] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्रों ने (ही) श्यामसुन्दर को (हमारी ओर से) निष्ठुर करा दिया है; (इन्होंने) उनके सामने जाकर हमारी चुगली की और हमसे उनका मन उचटा दिया (उदासीन बना दिया) । (उन्होंने वहाँ) यही कहा कि हम तो उन्हें बुलाते हैं, पर वे यहाँ नहीं आती हैं। तुम्हारी ओर आने में आर्यपथ – (शिष्टों के मार्ग-) का विचार करती तथा लोगों का भय मानती हैं। यह सुनकर उन – (मोहन-) ने हमें मन से हटा दिया और (तब से) वे नेत्रों को साथ रखते हैं। (मोहन को) अपनी सेवा के वश करके (उनका सौन्दर्य-सुख) लूटते हैं। अब बात (उनके) अपने हाथ (वश) में है। वे (नेत्र) भली प्रकार अपना ही स्वार्थ देखने वाले हैं। सदा (मोहन के) साथ ही रहते हैं, कहीं हटते नहीं। सुनो! जैसे वे (श्यामसुन्दर) हैं, वैसे ही ये (नेत्र) भी हैं; (दोनों ही) ह्रदय के बड़े (ही) कुटिल हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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