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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग[6] (एक विप्र-पत्नी कह रह ह-प्रियतम! मुझे) श्रीहरि के दर्शन की पूर्ण लालसा है। स्वामी! सुनो, तुमने यह बुरा किया कि (मुझे) श्यामसुन्दर के पास नहीं जाने दिया। अपने उच्च कुल के अभिमान से हठ (बल)- पूर्वक मुझे रोक रखा और तुमने (अपने) मन में कुछ और (पाप की बात) सोची। (उन) यज्ञ पुरुष (सम्पूर्ण) यज्ञों के भोक्ता एवं फलदाता पुरुषोत्तम) - को छोड़कर (तुम) जो यज्ञ की विधियाँ पूरी कर रहे हो, उससे बताओ तो कि कौन-सा स्वार्थ सिद्ध हुआ? सूरदासजी के शब्दों में यज्ञ पत्नी कहती है— सुनो, (तुम्हें मैं) कहाँ तक समझाऊँ, (मेरा मोहन से) मिलने का समय बीता जा रहा है; (अतः) पतिदेव! (अब यह) अपनी देह सँभाल लो, बिना प्राणों के (शेष) सब सामग्री (यह) रखी है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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