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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सूही [90] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी!) मैं श्याम को कैसे पहचानूँ! क्रमशः (बारी-बारी से) उनके एक-एक अंग को देखती हूँ, (किंतु) पलकों की (बार-बार) आड़ होने से उस अंग को (पूरी तरह देख) नहीं पाती। फिर नेत्रों को स्थिर करके देखती हूँ, पलकों का गिरना रोककर उस शोभा का अनुमान करती हूँ; (किंतु इतने में तो) कुछ और ही भाव, कुछ और ही शोभा हो जाती है। बताओ सखी! कैसे उसे ह्रदय में ले आऊँ। क्षण-क्षण में (उनके) अंग-प्रत्यंग की शोभा अपार होती जाती है। फिर देखती हूँ और फिर (देख लेने का) हठ करती हूँ; (किंतु) स्वामी की महिमा का एक जीभ से कैसे वर्णन करूँ (वह तो अनन्त हैं) । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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