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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल [226] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) ये नेत्र योधा बने घूमते हैं, सम्मुख भिड़ते हैं, पीछे मुड़ते नहीं और (श्यामसुन्दर की) शोभा रूपी सेना से डरते (भी) नहीं। ये अपंग (अंगहीन) अपने (कृष्ण-दर्शन का) लोभ रूपी हथियार लेकर दौड़ते हैं, (इनके) शरीर पर पलक गिराना रूप कवच (भी) नहीं है और ये भौंह रूपी (सुदृढ़) धनुष पर चढ़े हाव-भाव एवं कटाक्ष रूपी बाणों से लड़ते हैं। ये महान् वीर हैं, उधर (श्यामसुन्दर के) प्रत्येक अंग का सौन्दर्य रूप बलवान् सेना है, उसी के ऊपर ये दौड़ते हैं। सुनो, (फिर भी) मेरे ये नेत्र एकटक रहते हैं, मनमोहन को देखने में) पलकें (भी) नहीं गिराते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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