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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिहागरौ[309] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्र स्वप्न के-से भ्रम में भूल गये हैं; (क्योंकि श्यामसुन्दर की) जिस शोभा को वे देखते हैं, वह फिर नहीं रह जाती (नयी ही हो जाती है) । इससे ये संदेह के झूले में झूलते रहते (संदेह में पड़े रहते) हैं। एकटक (देखते) रहते हैं, कभी तृप्त नहीं होते। इतने पर भी ये प्रफुल्लित रहते हैं, (मेरी) उपेक्षा किये रहते हैं, मुझे मानते नहीं और कहते ह-‘हमारी तुलना में कौन आ सकता है।’ मुझसे वे इस भाँति निर्मूल होकर (सर्वथा) चले गये, जैसे जलकुम्भी (घास) जड़ के साथ ही जाती है। अब श्यामसुन्दर के सौन्दर्य रूपी जलराशि में रूप तथा रंग से (उनके) अनुकूल होकर पड़ गये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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