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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग जैतश्री[224] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी मेरे) नेत्र अत्यन्त अनुकूल होकर श्यामसुन्दर से (इस भाँति) मिल गये हैं, जैसे पानी पानी में मिलकर सर्वथा एक हो जाता है; फिर उन्हें कौन पृथक् कर सकता है। जैसे बवंडर तिनके को लेकर उड़ता है, या जैसे शरीर के साथ उसकी परछाईं रहती है अथवा वायु के वश जैसे झंडी उड़ती है, वैसे ही ये (श्यामसुन्दर की) शोभा में लीन हैं। मन तो पीछे (रह जाता है) और ये (उससे भी) आगे दौड़ते हैं, (सभी चंचल) इन्द्रियाँ इनकी गति देखकर लज्जित हो गयीं। श्यामसुन्दर को जैसा इन्होंने पहचाना, वैसा किसी ने नहीं पहचाना। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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