विषय सूची
अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिहागरौ [148] सूरदासजी के शब्दों में श्रीराधा पुनः कह रही ह-कमलदल के समान नेत्रों वाले श्यामसुन्दर! तुमसे विमुख लोगों के साथ रहने का मुझे जो दुःख है, उसे कब दूर करोगे? घर तो मुझे (जलती) भट्ठी-जैसा लगता है, चिन्ता-ही-चिन्ता में मैं मरी जाती हूँ। तुम्हारे सम्मुख मेरी यह दशा है; (फिर भी) तुम (अपने) मन में क्या (किसका) दबाव मानते हो? उन माता-पिता को धिक्कार है, उस भाई को धिक्कार है, (जो) मुझे बराबर कुरेदते (त्रास देते) रहते हैं, (किंतु) श्यामसुन्दर! मैंने अपना मन तुममें इस प्रकार लगा दिया है (एकाकार कर लिया है) जैसे हल्दी और चूना मिलकर (रोली के रूप में) लाल रंग के हो जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |