विषय सूची
अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सोरठ[171] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्र तो भली प्रकार उन – (श्यामसुन्दर-) में ही रम गय-लीन हो गये। जब मन गया, तब तो मैंने जाना (तक) नहीं; (अब) ये दोनों (नेत्र) मेरा अनादर करके (मेरे सामने) चले गये। ये तो (जाकर) श्यामसुन्दर के प्रिय बन गये, सदा वे इनमें ही रहते हैं। बार-बार यह कहकर (हम) सब गोपियाँ हाथ मलती हैं, सिर पीटती हैं, पश्चात्ताप करती हैं कि ‘मूर्खों के समान हमें यह समझ पीछे आयी है, (पहले तो) हमने ही उन – (मन और नेत्र-) को श्याम के सामने कर दिया था। अब तो (वे) हमारे स्वामी से जा मिले, (भला) अब माँगने से उन्हें (कहीं) पा सकती हूँ?’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |