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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग नट[250] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे) नेत्र जहाज के कौए (जहाज पर बैठे कौए के समान) हो गये। ये बार-बार उड़कर जाते हैं, (किंतु श्याम की शोभा रूपी समुद्र का) पार नहीं पाते और फिर इसीलिये लौट आते हैं। सखी! इनकी जब ऐसी दशा हो गयी, तब अब पश्चात्ताप करने लगे हैं। (पहले तो) मेरे रोकते-रोकते उठकर दौड़ पड़े (तथा इस दशा का) अनुमान ही नहीं कर पाये। वे (मोहन तो) समुद्र – (के समान) हैं और ये (नेत्र) छोटे बर्तन – (के समान); उस (अतुल) आनन्द-राशि को (ये) रखें कहाँ। सुनो, ये (नेत्र) चतुर कहे जाते हैं, (किंतु) वह (श्यामसुन्दर की) शोभा (तो) महान् प्रकाशमयी है (वहाँ ये टिक ही नहीं पाते) । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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