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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री [79] सूरदासजी के शब्दों में श्रीराधा कह रही ह-(सखी!) फल का भोग तो कर्म के पीछे (अपने प्रारब्ध कर्म पर निर्भर) है। जो अपना दिया (किया) हुआ है, वही प्राप्त होता है, अपने चाहने से कुछ नहीं मिलता। श्यामसुन्दर तो प्रत्यक्ष खड़े हैं; (किंतु) मुझे बताओ, उनका कौन-सा अंग किसने किस प्रकार का पाया है? (वे) श्याम तो ठगों के राजा हैं। इन श्रीहरि रूपी धनी से प्रेम का भिखारी भला, नेत्रों के (नन्हें) पात्र में क्या ले। वे (तो) हिलोरें लेते अमृतपूर्ण सागर हैं; किंतु कृपा करके दर्शन (ही भली प्रकार) नहीं देते। गोपाल तो सौन्दर्य के समुद्र हैं, वहाँ कुछ कमी नहीं है; (किंतु) सखी! मिलता तो वही है, जो ललाट में लिखा हुआ है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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