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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री [100] सूरदासजी के शब्दों में श्रीराधा कह रही हैं- (सखी!) जिस दिन से श्यामसुन्दर दिखायी दिये, उसी दिन से मेरे इन नेत्रों ने दुःख-सुख सब भुला दिया है। (उन) गोपाललाल के मनोमुग्धकारी अंग प्रेम के अमृत से पूर्ण हैं, सो (ये नेत्र उनकी) मुसकराहट का आश्रय लेकर वहीं बस गये, बड़ी रूचि से (इन्होंने वहीं अपना) भवन बना लिया है। मैं उन्हें समझाने के लिये मन को भेजती हूँ, किंतु वे रात-दिन अड़े ही रहते हैं। उनको लौटाने के लिये जैसे-जैसे प्रयत्न करती हूँ, वैसे-वैसे वे और भी दृढ़ हठ पकड़ते जाते हैं। (उन्हें) ऊँच-नीच (भला-बुरा) समझाने की चेष्टा करके थक गयी, बार-बार उनके पैर पड़ी, (किंतु) (उनके) उस आनन्द का कहाँ तक वर्णन करूँ। (वे) एकटक देखने से हटते नहीं (पलकें ही नहीं गिराते) । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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