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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सोरठ [141] (व्रज की नारियों को) श्रीनन्दनन्दन के बिना शान्ति नहीं मिलती। (वे) सब (श्यामसुन्दर के) अत्यन्त अनुराग से पूर्ण हैं; जहाँ श्यामसुन्दर होते हैं वहीँ (पहुँचने को उनका) चित्त ढरता (चाहता) है। घर जाती हैं, (तो) वहाँ मन लगता नहीं; अतः बड़े-बूढ़े लोग बहुत डाँटते हैं। वे लोग कुछ कहते हैं और ये कुछ और ही करती हैं। (इधर) सास और ननद उन पर झल्लाती हैं। (वे कहती हैं— ) तुम्हें माता-पिता ने यही सिखलाया है, (जो) कहना नहीं करती हो? (फलतः) वे क्रोध से जलती रहती हैं, (जो) कहना नहीं करती हो? (फलतः) वे क्रोध से जलती रहती हैं (किंतु) उनका स्वामी— (श्रीकृष्ण— ) से चित्त उलझ गया (उनके प्रेम में लग गया) है, यह समझकर वे (गोपियाँ) अपने-अपने हृदयों में बोध (धैर्य) धारण करती हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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