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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गूजरी [127] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-सखियों! सुनो, ये (राधा-कृष्ण) ऐसे लगते हैं कि इनके प्राण एक हैं (किंतु क्रीड़ा का) आनन्द – (लूटन-) के लिये शरीर दो बन गये हैं; एक पल के लिये भी ये एक-दूसरे को छोड़ते नहीं। बैठते, सोते, जागते (ये) दोनों एक-दूसरे के साथ से अलग नहीं होते; (इनका) प्रेम आज का नहीं, पहले का (अवतार-धारण से पूर्व का) है और (सदा) आगे भी रहेगा, यह बात मुझसे सुन लो। मेरा कहना तुम सच समझो और इनका स्वागत-सत्कार करो। श्रीराधाकान्त श्यामसुन्दर ऐसे हैं, जो प्रेम से ही अनुरक्त होते (रीझते) हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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