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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कल्यान [86] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी!) यदि मैं विधाता को अपने वश में कर पाऊँ तो सखी! कुछ तेरा कहना हो और मैं (भी) अपनी अभिलाषा पूर्ण कर लूँ। बार-बार उसे डाँटकर प्रत्येक रोम में नेत्र माँगूँ और यह नवीन पद्धति चलाऊँ कि (नेत्र) एकटक रहें, पलकें न गिरा करें। क्या करूँ, घनश्याम तो शोभा की राशि हैं और (देखने के साधक) नेत्र दो ही हैं, उनमें स्थान है नहीं। सुनो! इतने पर भी ये पलकें गिरती हैं, यह दुःख किसे सुनाऊँ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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