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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल[345] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी! मेरी) ये आँखें भाग्यशालिनी हैं, जिन पर श्यामसुन्दर रीझे हैं; (वे) अपने शरीर पर से (इन्हें) दिन या रात में तनिक (भी) नहीं हटाते। किंतु ये कैसी लोभ भरी हैं कि उनकी शोभा को चुराकर रखती हैं, दूसरा (कोई) ऐसी (बात) नहीं कर सकता; (क्योंकि) इससे (उसकी) प्रतिष्ठा जाती है। यह काम (आँखों का मोहन से परिचय कराना) तो पहले मन ने ही किया था। (पर) अब तो वह (भी) पश्चात्ताप करता है। उन – (नेत्र-) के गुण (करतब) सोच-सोचकर वह सूखता रहता है। वे इस – (मन-) पर (भी) विश्वास नहीं करतीं। (और) सब इन्द्रियाँ तो अलग छूट गयीं, (केवल) आँखें ही (दर्शन का) आनन्द लूटती हैं। इन – (आँख-) के साथ जो (इन्द्रियाँ) रहती हैं, वे भी पश्चात्ताप करके कष्ट ही पाती हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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