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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सूही[223] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी!) ये (मेरे) नेत्र (बड़े) नमकहरामी हैं। ये चोर, ठग, लुटेरे और कुमार्ग से चलने वाली एवं अन्यायी कहे जाते हैं। (यही नहीं, ये) निर्लज्ज, निर्दय, निःशंक, पापी और जैसे ये अपना ही स्वार्थ देखने वाले (भी) हैं; (क्योंकि) मैंने बचपन से ही (इन्हें) पालन-पोषण करके बड़ा किया और जब (ये) बड़े हुए तब छोड़कर चले गये। (ये) हमारी उपेक्षा करके श्याम के साथ आनन्द करते हैं, उन्होंने (भी) इन्हें प्रेम करके अपना लिया है। ये हमारे स्वामी से जाकर ऐसे मिल गये हैं, जैसे पानी और दूध मिल जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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