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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कल्यान[308] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-(सखी!) श्यामसुन्दर के श्रीअंग को देखकर (मेरे) नेत्र कभी तृप्त नहीं होते, एकटक ही दृष्टि जोड़े रहते हैं, वैसी ही इनकी दशा हो गयी है। (मोहन की) शोभा-तरंगें नदियाँ हैं और (उनके लिये) ये (नेत्र) मानो समुद्र हैं, प्रेम (उस नदी की) धारा है और दर्शन-लोभ रूपी अत्यन्त गहराई है, जिसकी थाह पाना असम्भव है। इतने पर भी ये तृप्ति का अनुभव नहीं करते, इन (नत्रों) – की उस दशा का वर्णन सखी! नहीं किया जा सकता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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