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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग कान्हरौ [150] सूरदासजी के शब्दों में श्रीराधा कह रही ह-हे प्राणनाथ! तुम मेरा स्मरण क्यों नहीं करते? हे दीनदयाल! मैं दुःख पा रही हूँ, (मुझ पर) कृपा करो और मेरी कामजनित उपद्रव की पीड़ा तथा वियोग को दूर कर दो। (यह तो) मैं जानती हूँ कि तुम बहु-रमणी-रमण (अनेकों गोपियों के प्रिय) हो, (परंतु) इसी के धोखे में पड़कर मुझसे क्यों झगड़ते (मेरी क्यों उपेक्षा करते) हो। स्वामी! सुनो, तुम तो ह्रदय की बात जानने वाले हो, मैं मन और वाणी से (केवल) तुम्हारा ही चिन्तन करती हूँ। [151] सूरदासजी के शब्दों में श्रीराधा कह रही ह-(श्यामसुन्दर) मैं तो तुम्हारी इस माया – (ममत-) में ही फँसी हूँ, (फिर) तुम क्यों (प्रेम) तोड़ते हो? मेरा चित्त तो तुम्हारे चरणों में ही लगा है, (अतः) आपके मुख मोड़ने – (उदासीन होन-) पर (मेरा) धैर्य कैसे रहेगा। (जो) कोई तुम्हारे सामने (बहुत-सी) बातें बनाकर जोड़ती हैं (मुझे तो यह आता नहीं), वे ही अब आकर मुझसे सम्बन्ध क्यों नहीं स्थापित करतीं। प्रियतम! मेरे तो ह्रदय में तुम्हीं हो, तुम्हें देखे बिना मेरा ह्रदय जैसे खँरोच उठता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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