विषय सूची
अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सोरठ[238] सूरदासजी के शब्दों में एक गोपी कह रही ह-अरी सखी! (मेरे) नेत्र ओछे (अल्प) चोर हैं, श्यामसुन्दर के सौन्दर्य की अद्भुत सम्पत्ति पाकर उसके दर्शन से (ही) तृप्त (पूर्णकाम) हो गये। उनके अंग-अंग की शोभा – (को बटोरने के लिये) इच्छा की; पर वह (श्यामसुन्दर की अपार शोभा) क्या (इनके लिये) पड़ी रह सकती है? जैसे चोर (अपार सम्पदा में से) क्या लें और क्या छोड़ें? (इस चिन्ता में) विवश हो जाता है, वैसी ही करनी इन्होंने की। (अरे) वे बार-बार जाकर एक-एक अंग को पकड़ते (निरखते) हैं और फिर अधीर होकर उससे चिपट जाते हैं, ऐसे भोले (विचारहीन) हो गये। (इतने में) सबेरा-जैसा हो गया और लोग जग गये तथा ये पकड़ गये। जो कोई बिना समझे-बूझे काम करता है, क्या हठ करने से वह श्रीहरि को पा (वश में कर) सकता है? (फल यह हुआ कि) जैसे मुझे इन्होंने सर्वथा त्याग दिया था; वैसे ही ये (नेत्र भी) जाकर श्यामसुन्दर के वश में पड़ गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पद संख्या |